________________
त्रैवर्णिकाचार।
ANNA
चैत्यालयस्य चैत्यस्य लक्ष्म संक्षेपतो मया।
वर्णितं च ततो वक्ष्ये वन्दनादिविचारकम् ॥ ४२ ॥ यहां तक चैत्य और चेत्यालयका लक्षण संक्षपसे कहा गया, अब इसके आगे वन्दना आदिका विचार करते हैं ॥ ४२ ॥
__ होमशालासे उठकर चैत्यालय-मन्दिरको जावे । तस्मात्स्वस्थमनीभवन् भवभयाद्रीतः सदा धार्मिको मध्येनागरिकं जिनेन्द्रभवनं घण्टाध्वजाभूपितम् । धर्मध्यानपरास्पदं सुखकरं सद्रव्यपूजान्वित
ईर्यायाः पथशोधयन् स यतिवद्गहाव्रजेच्छ्रावकः ॥४३॥ होम आदिसे स्वस्थ चित्त हो कर, संसारके सम्पूर्णभयोंसे हमेशह डरता हुआ, धार्मिक गिरस्त, उत्तम पूजासामग्री साथमे लेकर ईयीपथशुद्धिपूर्वक, नगरके बीचमें बने हुएं, घंटा-ध्वजाओंसे सुसज्जित, धर्म्यध्यानके करनेका उत्कृष्ट स्थान, सुखको करनेवाले जिनचैत्यालयको महामुनिकी तरह अपने घरसे रवाना होवे ।। ४३॥
वहिरे ततः स्थित्वा नमस्कारपुरस्सरम् ।
संस्तुयाच्छ्रीजिनागारं परमानन्दनिर्भरम् ॥ ४४ ॥ वहां पहुंचकर जिनमंदिरको नमस्कार करे और बाहर दरवाजेपर खड़ा रह कर परम आनंद करनेवाले श्रीजिन-चेत्यालयकी स्तुति करे ॥ ४४ ॥
सपदि विजितमारः सुस्थिताचारसारः क्षपितदुरितभारः प्राप्तसद्धोधपारः । सुरकृतसुखसारः शंसितश्रीविहारः
परिगतपरपुण्यो जैननाथो मुदेऽस्तु ।। ४५ ॥ .. वे जिन भगवान मेरे कल्याणके करनेवाले होवें। जिनने क्षणभरमें कामदेवको अपने काबमें कर लिया है. जो सम्यक् आचरणपर आरूढ हो चुके हैं, जिनने चार घातियारूप महापापके बोझको अपनेसे अलहदा कर दिया है, जो सद्बोध-के पारको पाचुके हैं, जिनके लिए देवोंके द्वारा सुख-सामग्री जुटाई जाती है, जिनका विहार अत्यन्त प्रशंसनीय है और जिनने उत्कृष्ट पुण्य प्राप्त किया है। यह श्लोक पढ़कर नमस्कार करे ॥४५॥