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. छठा अध्याय ।
अनन्तमहिमोपेतमनन्तगुणसागरम् ।
अनन्तसुखसम्पन्नमनन्तं प्रणमाम्यहम् ॥१॥ जो अनन्त महिमा युक्त हैं, अनन्त गुणोंके समुद्र हैं, और अनन्त सुख सम्पन्न हैं उन अनन्तनाथ परमात्माको मैं, नमस्कार करता हूं ॥१॥ अब जिन चैत्यालयका लक्षण बताते हैं
शकुनं श्रीगुरुं पृष्ट्वा जप्त्वा कर्णपिशाचिनीम् ।
तदुपदेशतः कुर्याजिनागारं मनोहरम् ॥ २ ॥ अपने श्रीगुरुसे शकुन् पूछकर और कर्णपिशाचिनी मंत्रको जपकर: उन (गुरु) के उपदेशक अनुसार मनोहर.जिनमन्दिर बनवावे ॥ २..
कर्णपिशाचिनी यंत्र । यन्त्रं विलिख्य पूर्वोक्तविधिना कांस्यभाजने ।
तस्याग्रे तु जपं कुर्यात् काञ्जिकाहारभुक्तिभाक् ॥३॥ पूर्वोक्त विधान पूर्वक कांसीके वर्तनपर मंत्र लिखकर उस यंत्रके सामने जप करे । जप करनेवाला पुरुष उस दिन केवल कालिका-आहार करे ॥३॥
इस तरहका यंत्र बनवावे । ॐ जोगे मग्गे०
ॐ ही सः हल्वी ह ही ॐ ___ॐ यन्त्रस्थापना ॐ
इति यन्त्रम् ।
अर्थ मंत्र:-ॐ जोगे भग्गे तच्चे भूदे भव्वें भविस्से अक्खे पक्खे जिनपार्ने श्री ही स्त्री कर्णपिशाचिनी नमः । इति मन्त्र
यंत्रके सामने यह मंत्र जपे।