________________
सोमसेनभट्टारकविरचित-
. यह मंत्र कमलके आकार होता है। इसकी कर्णिकाके मध्य भागमें अर्हत आदि आठको लिखे । इसके बाद उसके आठ पनोंपर जयादि आठ देवोंको लिखे। इसके बाद सोलह पत्ते खेच कर उनपर सोलह विद्यादेवतों को लिखे । इसके वाद चौवीस पत्ते खेच कर चौवीस यक्षी देवोंको लिखे । इसके वाद बत्तीस पत्तोंपर शक्रोंको लिखें। इसके बाद वज्रायोंपर चौबीस यक्षदेवों को लिखे । इसके बाद दश दिक्पालोंको लिखे । इसके बाद नौ ग्रहोंको लिखे और इसके बाद अनावृत यक्षौको लिखे । इस तरह मंत्र उद्धार करे ॥ १७ ॥
१२८.
दर्भासन --
तद्दक्षिणभागे — ॐ हीँ अहँ क्षाँ ट ठ दर्भासनं निक्षिपामि स्वाहा ॥
दुर्भासनस्थापनम् ॥ १८ ॥
मंत्र दक्षिण भाग " ह्रीं अर्ह क्षा" इत्यादि मंत्रको पढ़कर दर्भका आसन विद्यावे ॥ १८ ॥ ॐ नहीं अर्ह निस्सही हूं फट् दर्भासने उपविशामि स्वाहा ॥ दर्भासने उपवेशनम् ॥ १९॥
" ओं ह्रीं अर्हं निस्सही " इस मंत्र को पढ़कर दर्भासन पर बैठे ॥१९॥
मौनधारण -
ॐ ह्रीँ ँ अर्ह ँ ह्यू मौनस्थितायाहं मौनव्रतं गृह्णामि स्वाहा || मौनग्रहणम् ||२०||
..
"
" ओं ह्रीं अहं धूं ” इत्यादि मंत्र पढ़कर मौन धारण करे ॥ २० ॥
अंगशोधन-
ॐ ह्रीं अर्ह भूः प्रतिपद्ये भुवः प्रतिपद्ये चतुर्विंशतितीर्थकुच्चरणशरणं प्रतिपद्ये ममाङ्गानि शोधयामि स्वाहा || बस्त्राञ्चलेन स्वांगस्स शोधनम् ॥ २१ ॥
" ओं ह्रीं अर्ह भूः" इत्यादि मंत्र पढ़कर वस्त्रके आँचल से अपने शरीरकी शुद्धि करे ॥२१॥
1
अहे.
हस्तप्रक्षालन
असुज्जुरभव तथा हस्तौं प्रक्षालयामि स्वाहा हस्तद्वयपवित्रीकरणम् ॥ २२ ॥
#
५८ “ ओं ह्रीं अर्ह असुज्जुरभव ” इत्यादि मंत्र पढ़कर दोनों हाथ पवित्र करे - धोवे ॥ २२