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नैवर्णिकाचार |
इसके बाद पुनः स्नान कर और आचमन कर वहीं पर तर्पण करे । सो ही दिखाते हैं ।
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ॐ व्हां अर्हद्भयः स्वाहा ॥ १ ॥ ॐ नहीं सिद्धेभ्यः स्वाहा ॥ २ ॥ ॐ हूं सूरिभ्यः स्वाहा ॥ ३ ॥ ॐ हौं पाठकेभ्यः स्वाहा ॥ ४ ॥ ॐ व्हः सर्वसाधुभ्यः : स्वाहा ॥ ५ ॥ ॐ हां जिनधर्मेभ्यः स्वाहा ॥ ६ ॥ ॐ व्हां जिनागमेभ्यः स्वाहा ॥ ७ ॥ ॐ व्हां जिनचैत्येभ्यः ः स्वाहा ॥ ८ ॥ ॐ हां जिनालयेभ्यः स्वाहा ॥ ९ ॥ ॐ व्हां सम्यग्दर्शनेभ्यः स्वाहा ॥ १० ॥ ॐ हां सम्यग्ज्ञानेभ्यः ः स्वाहा ॥ ११ ॥ ॐ हां सम्यक्चारित्रेभ्यः स्वाहा ॥ १२ ॥ ॐ हां सम्यक्तपोभ्यः स्वाहा ॥ १३ ॥ ॐ व्हां अस्मद्गुरुभ्यः स्वाहा ॥ १४ ॥ ॐ हां ॥ अस्मद्विद्यागुरुभ्यः स्वाहा ॥ १५ ॥ इति पञ्चदश तर्पणमंन्त्राः । एतैस्तर्पणं कुर्यात् ॥ ततो जलान्निर्गमनक्रिया अग्रे वक्ष्यते ।
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ये पंद्रह तर्पण मंत्र हैं, इनसे तर्पण करे। इसके बाद जलसे निकल कर क्या क्या क्रिया करे इसका जिकर आंगेके अध्यायमें किया जायगा ।
शौचाचारविधिः शुचित्वजनकः प्रोक्तो विधानागमे,
सधारिणां गुणवतां योग्यो युगेऽस्मिन्कलौ । श्रीभट्टारकसोमसेनमुनिभिः स्तोकोऽपि विस्तारतः,
प्रायः क्षत्रियवैश्यविप्रमुखकृत् सर्वत्र शूद्रोऽप्रियः ॥ ११५ ॥
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क्रियाशास्त्रोंमें शरीरको पवित्र बनानेवाली यह शौचाचारविधि. कही गई है जो इस कलियुगमें गुणी, व्रती गृहस्थोंके योग्य है । यह विधि शास्त्रोंमें बहुत ही संक्षेपसे कही गई है। वही कुछ विस्तार लिए हुए सोमसेन भट्टारकके द्वारा यहाँ कही गई है । यह विधि प्रायः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इन तीनों वर्णोंको सुखी बनाने को कही है । शूद्रोंको इस उपर्युक्त शौचाचारविधिका करना सुखकर नहीं है ॥ ११५ ॥