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· नैवर्णिकाचारः ।
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होम करनेकी समिधा छिलके सहित होनी चाहिए तथा सीधी और लंबाई में बराबरकी प्रशंसनीय मानी गई है। दस अंगुल किंवा बारह अंगुल लम्बी होनी चाहिए | शमीकी समिधा छह महीने तक काम देती है । खादर और पलाशकी तीन माह तक काम देती है । पीपलकी समिधा दर रोज लाना चाहिए | अपामार्ग ( खेजड़ी ) और आककी समिधा एक दिन तक ग्राह्य है । बड़, उंबर वगैरहकी समिधा तीन दिन पर्यन्त ग्राह्य होती है । यदि उक्त प्रकारकी समिधा न मिले तो किसी किसीका मत है कि इसके स्थानमें कुगोंसे काम ले कुश एक माह पर्यन्त ग्राह्य होता है और दूब तुरतकी ताजा तोड़ी हुई ही ग्राह्य है, अधिक नहीं ॥ १५८ ॥ १६१ ॥
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कोद्रवं चणकं मापं मसूरं च कुलित्थकम् ।
कांजिपकं परानं च वैश्वदेवे तु वर्जयेत् ॥ १६२ ॥
कोदों, चने, उड़द मसूर, कुलत्थ, कांजिका ( एक प्रकारका पदार्थ ) का पका हुआ अन्न और दूसरेका अन्न ये पदार्थ विश्वदेव कर्ममें वर्जनीय हैं ॥ १६२ ॥
प्रतिष्ठादिमहत्कार्ये कुर्यादेवं सविस्तरम् ।
नित्यकर्मणि संक्षेपात्तत्सर्वं विधिपूर्वकम् ॥
१६३ ॥
-१.१३
प्रतिष्ठा आदि जैसे महत्कार्यों में यही होमादि विधान इसी तरह विस्तारके साथ करे । और नित्य कर्म में इन्हीं सब कार्योंको संक्षेपसे विधिपूर्वक करे ॥ १६३ ॥
होमके भेद |
होमस्तु त्रिविधो ज्ञेयो गृहिणां शान्तिकारकः । पानीयवालुकाकुण्डभेदाद्रम्यः स्वशक्तितः ॥ १६४ ॥
जलहोम, बालुकाहोम और कुण्डहोम ( अग्निहोम ) इस तरह होम तीन प्रकारका है, जो गिरस्तोंको शान्तिका करनेवाला है । अतः गिरस्तों को हमेशा अपनी शक्तिके अनुसार ये तीनों होम करना चाहिए ॥ १६४ ॥
जलहोम | यत्सद्वर्तुलकुण्डलक्षणमिदं श्रीवारिहोमे जिनैः ;
प्रोक्तं ताम्रमृदादिवस्तुरचिते कुण्डे समारोपितम् । कुर्याच्छ्रीतिथिदेवता ग्रहसुराः शेषाश्च सन्तर्प्यताम्,
शान्त्यर्थं जलहोममिष्टममलं दुष्टग्रहाणां बुधः ॥ १६५ ॥