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सोमसेनभट्टारकविरचित
श्रीजिनेन्द्र देवने जलहोममें कुण्डका लक्षण गोल बताया है। वह कुंड तांबा, मिट्टी आदिका बना हुआ होना चाहिए | उस कुंडमें आरंभ किया गया कार्य करना चाहिए । तिथिदेवता, सूर्यादि ग्रह और वाकी देवोंका तर्पण करे । तथा दुष्ट ग्रहोंकी शान्तिके लिए बुद्धिमान श्रावक पवित्र जलहोम करे | भावार्थ -- तांबा मिट्टी वगैरहका गोल कुंड बनवावे, उसमें शान्तिके निमित्त तिथिदेवता आदि के सन्तोषके लिए होम करें ॥ १६५ ॥
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श्रीखण्डतण्डुलस्रग्भिः सम्भूषितमलं वरम् । शुद्धतीर्थोदकैः पूर्ण जलकुण्डं महामहे ॥ १६६ ॥
सन्धौतशोधितव्रीहिखे जिनमहोत्सवे । संस्थाप्य पूजकाचार्यो जलहोमं समाचरेत् ॥ १६७ ॥
चन्दन, अक्षत और मालासे सुशोभित किये गये, और तीर्थस्थानके शुद्ध जलसे भरे हुए उस पवित्र उत्तम जलकुंडको धोये हुए और साफ किये हुए चावलों पर रख कर, पूजकाचार्य जलहोम करे । भावार्थ - कुंड पर चन्दनादिका लेप कर, उसे शुद्ध तीर्थ जल से भरकर धोये हुए और साफ किये चावलों पर रक्खे और उसमें होम करे ॥ १६६ ॥ १६७ ॥
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सप्तधान्यैस्तु दिक्पालाँस्त्रिधान्यैस्तु नवग्रहान् ।
पकानं नालिकेरं च यथाशक्त्यत्र होमयेत् ॥ १६८ ॥
इस जलकुंडमें सात तरहके धान्योंसे दिक्पालों का, तीन तरहके धान्योंसे नवग्रहोंका होम करे तथा अपनी शक्तिके अनुसार पके हुए अन्न और नारियलका होम करे ॥ १६८ ॥
आचमं तर्पणं प्राणायाममत्र विधानतः ।
अपां कुंडे विधिं कुर्यादत्रापि सर्वमञ्जसा ।। १६९ ॥
इस जलहोम के समय विधिपूर्वक आचमन, तर्पण और प्राणायाम करे । तथा इस जलकुंडमें और भी सम्पूर्ण विधि ठीक ठीक रीतिसे करे ॥ १६९ ॥
दिक्पालाः प्रतिसेवनाकुलजगद्दोपार्हदण्डोत्कटाः, सद्धर्मप्रणये निबंद्धभगवत्सेवानियोगेऽपि च । पूजापात्र कराग्रतः सरमुपेत्योपात्तवल्यचनाः,
प्रत्यूहान्निखिलान्निरस्यत तनुस्नानोत्सवोत्साहिताः ॥ १७० ॥
हे दिक्पालो ! तुम विपरीत आचरण करनेवाले जगत् के दोषोंके - योग्य दण्ड-विधान करनेवाले हो इस लिए जिनाभिषेकके लिए जो मैंने कार्य आरंभ किया है उसे उत्साहित हो कर, जब जब