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सोमसेनभट्टारकविरचितmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm.mmmmmmmmmm
इत्थं युक्तिविधानतः सुसकलं सन्ध्यादिकोपासनं,
ये कुर्वन्ति नरोत्तमा भवभयाद्रीताश्च ते दुर्लभाः। संसाराम्बुधिनौसमां शिवकरां भव्यात्मनां प्राणिनां,
तस्मादादरपूर्विकां बुधजनाः कुर्वन्तु सन्ध्यां सदा ॥ १४९ ॥ इस प्रकार युक्ति और विधिपूर्वक सम्पूर्ण संध्योपासन क्रियाको जो भव्य पुरुप करते हैं ये सांसारिक भयोंसे निर्भय हो जाते हैं । यह संध्योपासना भव्य प्राणियोंको संसार-समुद्रसे तारनेके लिए जहाजके समान है और क्रमसे मोक्ष स्थानको ले जानेवाली है । इस लिए बुद्धिमान पुत्वोंको आदर पूर्वक दर रोज तीनों समय सन्ध्यावन्दन करना चाहिए ॥ १४९ ॥
श्रीब्रह्मसूरिद्विजवंशरत्न, श्रीजैनमार्गप्रवियुद्धतत्त्वः ।
वाचन्तु तस्यैव विलोक्य शास्त्रं, कृतं विशेपान्मुनिसोमसेनः ।। १५०॥ द्विजवंशमें शिरोमणि और जेनतत्वोंके स्वरूपको अच्छी तरह जाननेवाले श्रीब्रह्मसूरि नामके एक भारी विद्वान पंडित हमसे पहले हो गये। उन्होंने एक त्रैवर्णिकाचार नामका शास्त्र बनाया है। उसीको देखकर मुझ सोमसेन मुनिने भी इस त्रिवर्णाचार शास्त्रकी कुछ विशेष रीतिसे रचना की है। जिसे भव्य पुरुष अच्छी तरह पढ़ें और पढ़ावें ॥ १५० ।। इति श्रीधर्मरसिकशास्त्रे त्रिवर्णाचारनिरूपके भट्टारकश्रीसोमसेनीवरचिते
स्नानवस्त्राचमनसन्ध्यातर्पणवर्णनो नाम तृतीयोऽध्यायः॥
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