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...त्रैवर्णिकाचार। .
लक्षणं होमकुण्डानां वक्ष्ये शास्त्रानुसारतः।
भट्टारकैकसन्धेश्च दृष्ट्वा निर्मलसंहिताम् ॥ १०४॥ .. श्रीएकसन्धिनामके भट्टारककी रची हुई निर्दोष संहिताको देखकर शास्त्रानुसार होमकुण्डोंका लक्षण कहा जाता है ।।.१.०४॥ . . .
. होमकुंडस्थान । संशोधितमहीदेशे जिनस्य वामभागतः। अष्टहस्तसुविस्तारा दीर्घा तथैव वेदिका ॥ १०५ ।। चतुःषष्ठयंशकान् कृत्वा चतुष्कोणे समांशकान् । राक्षसांशान् परित्यज्य पश्चिमायां ततो दिशि ॥ १०६ ॥ मनुष्यांशेषु तिर्यक्षु वेदिकां कारयेत्पराम्।
तत्र श्रीजिननाथानां प्रतिमा स्थापयेत्पराम् ।। १०७ ॥ जिनेन्द्र देवके बाई ओर जलमंत्रादिके द्वारा शुद्ध की हुई जमीन पर आठ हाथ लम्बी चोड़ी एक वेदी बनवावे ।उस वेदीके चारों कोनोंपर बराबर बराबर हिस्सेवाले चौसठ भाग खींचे । उनमेंसे राक्षसोंके भागोंको छोड़कर पश्चिम दिशाकी ओर आढ़े मनुष्यभागों पर एक दूसरी वेदिका बनवावे। उस पर जिनेन्द्रदेवकी पवित्र प्रतिमाको स्थापन करे ॥ १०५॥ १०७॥
ततोऽग्रदेवभागेषु छतत्रयं निवेशयेत् । . ..
चक्रवयं तथा यक्षयक्षीश्च स्वस्तिकं परम् ॥ १०८ ॥ उस प्रतिमाके सामनेके देवभागोंपर छत्रत्रय, चक्रत्रय, यक्ष-यक्षी और स्वतिकको स्थापना करे ।। १०८॥ ... . ब्रह्मभागाँस्ततस्त्यक्त्वा देवमानुषभागयोः। ...
पूर्वे ब्रह्मांशकात्तत कुण्डत्रयं तु कारयेत् ॥ १०९॥ . ...
मध्ये कुण्डं वरं तेषां त्रयाणां क्रियते शृणु। . ... .. :अरल्यगाधविस्तारं चतुरस्रं त्रिमेखलम् ॥ ११० ॥
. पश्चात् ब्रह्मभागोंको छोड़कर देव-मानुषभागके समीप जो ब्रह्मभाग हैं उनसे पूर्ववती जो भाग ': हैं उनपर तीन कुंड बनवावे और उन तीनों कुंडके बीचमें एक अरनिप्रमाण लंबा, इतना ही चौड़ा . और इतना ही गहरा चौकोन-जिसके चारों और तीन मेखला ( कटनी) खिंची हुई हो ऐसा
एक कुंड बनवावे ॥ १०९॥ ११०॥ ..