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..:. . त्रैवर्णिकाचार .
सव्यहस्तेन देवेभ्यो दत्वा भूमौ जलाञ्जलिम् ।
पीत्वाऽऽचम्य च सम्माये मस्तकोपरि सिञ्चयेत् ॥ १०५ ॥ इसके बाद जीवजन्तु रहित नदीके किनारे परकी भूमिको छने हुए प्रासुक जलसे सींचकर शुद्ध बनावे । इसके बाद उस पर बैठ कर आचमन करे । अनामिकामें कुश पकड़ कर और मार्जन कर मस्तकके ऊपर जलके छींटे डाले । दाहिने हाथसे देवोंके लिए जमीन पर जलकी अंजलि छोड़े फिर आचमन कर,जरासा जर पी, सम्मार्जन कर सिर पर थोड़ा सा जलं सींचे ॥ १०३ ॥ १०५ ॥ ... पटू वा त्रीण्यथवार्धाणि समुद्धार्य सुधीस्ततः।
कुशाद्यासनसुस्थाने चोपविश्य समासतः ॥ १०६ ॥ . ऊपरके श्लोंको द्वारा बताई गई क्रियाओंके कर चुकनेके बाद, दर्भ आदिके बने हुए उत्तम आसनों पर बैठ कर छह बार या तीन बार जलकी अंजली देवे ॥ १०६ ॥
बैठने योग्य आमन
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वंशासने दरिद्रः स्यात्पापाणे व्याधिपीडितः। .. धरण्यां दुःखसम्भूतिौभाग्यं दारुकासने ।। १०७ ।।
तृणासने यशोहानिः पल्लवे चित्तविभ्रमः। . .आजिने ज्ञाननाशः स्यात्कम्बले पापवर्द्धनम् ॥ १०८ ॥' ..., नीले वस्त्रे परं दुःखं हरिते मानभंगता । .
वैतवस्त्रे यशोवृद्धिारिद्रे हर्षवर्धनम् ॥ १०९ ॥ रक्तं वस्त्रं परं श्रेष्ठं प्राणायामविधौ ततः। -:-. ।'
सर्वेषां धर्मसिध्यर्थं दर्भासनं तु चोत्तमम् ॥ ११०॥ प्राणायाम करते समय बाँसके आसन पर बैठनेसे दरिद्री होता हैं, पत्थरके आसन पर बैठनेसे रोगी होता है, पृथिवी पर बैठनेसे दुःख उत्पन्न होता है, लकड़ीके आसनपर बैठनेसे दौर्भाग्य प्राप्त होता है, तृणोंके आसनपर बैठनसे यशकी हानि होती है, पत्तोंके आसनपर. बैंठनेसे चित्त स्थिर नहीं रहता, चर्मके आसनपर बैठनेसे ज्ञानका नाश होता है, कंबल पर बैठनेसे पापकी वृद्धि होती है, नील वस्त्र पर बैठनेसे बड़ा भारी क्लेश उत्पन्न होता है, हरित आसन पर बैठनेसे अपमान होता है, सफेद वस्त्र पर.बैठनेसे यश फैलता है, पीले वस्त्रपर बैठनेसे हर्ष बढ़ता है, और लाल कपड़े पर बैठना सबसे श्रेष्ठ है। तथा सभी धर्मकार्योंकी सिद्धिंके लिए दर्भके बने हुए आसनपर बैठना सबसे अष्टं है ॥१०७॥१०८॥१०९॥११०॥