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• त्रैवर्णिकाचार। ....
अपने पिता या बड़े भाईके जीते हुए-मौजूद होते हुए योगपट्ट ( साफा) न बाँधे तथा तर्जनी-अँगूठेके पासकी-गली में मूंजका . या चाँदीका पवित्रक (छल्ला.) तथा पैरोंमें खड़ाऊँ न पहने ॥ १०२॥ ...
. . . सन्ध्याचमनमन्त्रः। . पवित्रप्रदेशे उपविश्य सन्ध्या कार्या । .... पवित्र स्थानमें बैठकर सन्ध्या करना चाहिए। ...::. :: .:.
ॐ अद्य भगवतो महापुरुषस्य श्रीमदादिब्रह्मणो गतेऽत्र सरस्तीरे तस्य प्रपौत्रः तस्य पुत्रः श्रीवत्सगोत्रजोऽहं. देवदत्तनामा प्रातःसन्ध्या
करिष्य इति मुकुलितकर: संकल्पः । प्रथम हाथ जोड़ “ॐ अद्य भगवते" इत्यादि.मंत्रका संकल्प करे । इस मंत्रका भाव यह है कि भगवान महापुरुप श्रीआदिब्रह्माका मतानुयायी, गुरुदत्तका प्रपौत्र, यज्ञदत्तका पौत्र और जिनदत्तका पुत्र श्रीवत्सगोत्रोत्पन्न मैं देवदत्त आज इस नदीके किनारे पर प्रातःकालीन सन्ध्या करूँगा।
ॐ ही इवी वी में हं संतं पं द्रां द्रीं हं सः स्वाहा . . . __. इत्यनेनाचमनं कुर्यात् । शंखमुद्रितहस्तेन सर्वोऽप्यन पिवेज्जलम् । :
" :यह मंत्र पढ़कर आचमन करे । और अपने दाहिने हाथको शंखमुद्राके आकर बनाकर आचमनके जलको तीन बार पीवे ।
'ॐ ॐ ॐ' इत्येवं प्रत्येकमुच्चारयन् अंगुष्ठमूलेन. त्रिधा वक्त्रं
तिर्यक् सम्मार्जयेत् । ॐ ॐ ॐ इस तरह तीन बार उच्चारणकर अँगूठेके नीचले पैरेसे तीन बार मुखको टेढ़ापोंछे ।। .
ही ही ही 'इति हस्ततलेनोपरिष्टादधो द्विः सम्मार्जयेत् ।' ह्रीं ह्रीं ह्रीं इत सरह तीन बार बोलकर हाथकी हथेलीसे ऊपरसे नीचेको दो बार . मुख पोंछे।
___ इवी इसी । इति तर्जन्यादित्रयेणास्यं स्पृशेत् । ..
इवी इवी इस तरह दो बार बोलकर तर्जनी, मध्यमा और अनामिका इन तीन उँगलियोंसे मुखका स्पर्शन करे :- . . . . . . . . . . . . . . .