________________
S
सोमसेनभट्टारक विरचित
क्ष्वी ँ इत्येकवारं मुखं, एवं तर्जन्यंगुष्ठाभ्यां दक्षिण चामं च नासाविवरं वं मं । अंगुष्ठानामिकाभ्यां चक्षुषी है सं । कनीयस्यंगुष्ठयुग्मेन श्रोत्रयुग्मं तं पं । अंगुष्ठेन नाभिं द्रां । तलेन हृदयं द्रीं । हस्ताग्रेण भुजशिखरयुगं हं सः । समस्तहस्तकेन मस्तकं स्पृशेदेकवारमेव स्वाहा इति ।
इति श्रोत्राचमनविधिः क्रियाभेदात्पञ्चदशधा । अङ्गभेदात्पुनर्द्वादशधा । .
66
66
क्ष्वीं बोलकर मुखका एक बार स्पर्शन करे । इसी तरह “वं मं" बोलकर तर्जनी और अँगूठेके द्वारा नाकके दो छेदोंका, "हं सं " उच्चार कर अँगूठे और अनामिका द्वारा दोनों आँखोंका, " तं पं " कहकर कनिष्ठा और अँगूठे द्वारा दोनों कानोंका, द्रां " पढ़कर अँगूठेके द्वारा नाभिका, " द्रीं " बोलकर हस्ततलसे हृदयका, हंसः पढ़कर हाथके अग्रभाग द्वारा दोनों कन्धोंका, स्वाहा कहकर सब हाथके द्वारा संपूर्ण सिरका एक एक बार स्पर्शन करे । इस तरह यह श्रोत्राचमन - विधि की जाती है जो क्रियाभेदसे पंद्रह प्रकार और अंगों के भेदसे बारह प्रकारकी है ।
66
"
ततोऽनामिकायां दर्भ निधायानामिकाङ्गुष्ठाभ्यां नासाग्रं गृहीत्वा ॐ भूर्भुवः स्वः अ सि आ उ सा प्राणायामं करोमि स्वाहा | इति त्रिरुच्चार्य कुम्भकपूरकरेचकान् कुर्वन् प्राणायामं कुर्यात् ।
"
इसके बाद, अनामिकामें दर्भोंको पकड़े तथा अनामिका और अँगूठेसे नाकके अग्रभागको पकड़े । और “ ॐ भूर्भुवः ” इत्यादि मंत्रका तीन बार उच्चारण कर कुंभक, पूरक और रेचक इन raat करता हुआ प्राणायाम करे । इस तरह सन्ध्योपासन विधि की जाती है ।
अर्धोपासन - विधि |
शुद्धां कृत्वा ततो भूमिं शोधितोदकसेचनैः । उपविश्य नदीतीरे तत्र जन्तुविवर्जिते ॥ १०३ ॥
आचमनं ततः कृत्वाऽनामिकायां कुशं ततः । निधाय मार्जनं कृत्वा मस्तकोपरि सेचयेत् ॥ १०४ ॥
1
;