________________
.: त्रैवर्णिकाचारः ।
कपायवाससा नमो नमश्चानुत्तरीयमान् । ....
अन्तःकच्छो बहिःकच्छो.मुक्तकच्छस्तथैव च ॥२२॥ . अपवित्र कपड़े पहननेवाला; आधा वस्त्र पहननेवाला; मैले कुचैले कपड़े पहननेवाला; कौपीनलैंगोटी लगानेवाला, भगवाँ वस्त्र पहननेवाला, धोतीके सिवा दूसरा कपड़ा-दुपट्टी वगैरह न रखनेवाला, केवल भीतरकी तरफ कछौटा कसनेवाला, बाहरंकी तरफ कछौटा लगानेवाला, और बिलंकुल ही कपड़े न पहननेवाला इस तरह ये दश पुरुष नग्न माने गये हैं ॥ २१ ॥ २२ ॥
साक्षानमः स विज्ञेयो दश ननाः प्रकीर्तिताः ।। यंगुलं चतुरङ्गुलं चोत्तरीयं विनिर्मितम् ॥ २३ ॥ . कपायधूम्रवर्णं च केशजं केशभूषितम् । .....
छिन्नाग्रं चोपवस्त्रं च कुत्सितं नाचरेन्नरः ॥ २४ ॥ .. जो वस्त्र दो या चार अंगुल चौड़ा हो, भगवाँ हो, धूएँ जैसे रंगवाला हो, ऊनी हो, जिसपर ऊन या अन्य केशोंके बेलबूटे वगैरह निकले हुए हों, जिसके कौने वगैरह कटे हुए हों, और जो बिलकुल खराब हो, इस तरहके कपड़े त्रैवर्णिक श्रावकोंको न पहनना चाहिए ॥ २३ ॥ २४ ॥
दुग्धं जीर्णं च मलिनं मूपकोपहतं तथा । । ।
खादितं गोमहिण्यांचैस्तत्त्याज्यं सर्वथा द्विजैः ॥२५॥ तथा ऐसे कपड़े जो अग्निसे जल गये हों, जीर्ण हो गये हो, मलिन हो गये हों, चूहों द्वारा कुतर लिये गये हों, और गाय भैंस आदिके द्वारा जो खाये गये हों उनका त्रैवर्णिक श्रावक दूरसे ही त्याग करें; ऐसे कपड़े कभी न पहनें ॥२५॥
नीलं रक्तं तु यद्वस्त्रं दूरतः परिवर्जयेत् । ....
स्त्रीणां स्फीतार्थसंगोगे शयनीये न दुष्यति ॥ २६ (१) • जो वस्त्र नीले रंगसे रंगा गया हो.अथवा लाल रंगसे रंगा गया हो तो उसका श्रावकवर्ग दूरहीसे त्याग करें। यदि नीला रंग या लाल रंग और और पदार्थों-रंगों से मिले हुए हों तो. स्त्रियोंके लिये दूपित नहीं है । और उनके लिये सोते समय भी इस रंगका कपड़ा पहनना दोष नहीं है ॥२६॥
रक्षणाद्विक्रयाच्चैव तवृत्तेरुपीवनात्। '
अपवित्रो भवेद्नेही त्रिभिः पक्षविशुध्यति ॥ २७ ॥ . . .. ऐसे कपड़ोंको हिफाजतके साथ रखनसे, बेचनसे तथा इनका व्यापार कर आजीविका करनेसे गिरस्त अपवित्र हो जाता है। वह अपने इस धंदेको छोड़ देनेके बाद डेढ़ महीनेमें जाकर पवित्र, शुद्ध होता है ॥२७॥