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. .त्रैवर्णिकाचार : .जिसके ऊपर-नीचे रेफ है और जो शून्य-सहित हकारसे युक्त (है) है, ब्रह्मस्वर (ॐ) से विशिष्ट है, जिस पर कमलके पत्तोंके सन्धिमागमें तत्त्वाक्षर लिखे हुए हैं, प्रत्येक पत्रके अन्तमें अनाहत मंत्र लिखा हुआ है और जो ह्रींकारसे वेष्टित है; तथा स्वर, कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तंवर्ग, पवर्ग, यवर्ग
और शवर्ग ये आठ वर्ग जिसके हर पत्ते पर लिखे हुए हैं ऐसे परम देव-सिद्धचक्र का जो पुरुष ध्यान करता है वह मुक्तिके प्यारका पात्र बन जाता है और वैरीरूपी हाथीको वश करनेके लिए सिंहके समान हो जाता है ॥ ६८ ॥ .. .
उर्धाधो रेफसंयुक्तं सपर बिन्दुलाञ्च्छितम् ।
अनाहतयुतं तत्त्वं मन्त्रराज प्रचक्षते ॥ ६९ ॥ हैं। ऊपर-नीचे जिसके रेफ है और जो शून्यसे युक्त है ऐसे अनाहत युक्त हकारको मंत्रराज कहते हैं ।। ६९ ॥
कारं विन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः ।
कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥ ७० ॥ ॐ नमः ॥ जो आंकार अक्षर बिंदुसे सहित है, जिसका मुनिगण ध्यान करते हैं उस सब मनोरथोंके घूरनेवाले और मोक्षको देनेवाले ॐको नमस्कार है ।। ७०॥
अवर्णस्य सहस्रार्ध जपन्नानन्दसम्भृतः ।
प्रामोत्येकोपवासस्य निर्जरां निर्जितास्रवः ॥ ७१ ॥ जो प्रीतिपूर्वक इस ओंकारके पाँचसौ जप करता है वह नवीन कर्मोंके आसवको रोकता है और एक उपवासकी निर्जरा करता है । भावार्थ--एक उपवासके करनेसे जो फल मिलता है वह इस ओंकारके पाँचसौ जप करनेसे प्राप्त हो जाता है ॥ ७१ ॥
हवर्णान्तः पार्श्वजिनोऽधो रेफस्तलगतः स धरेन्द्रः। .
तुर्यस्वरः सविन्दुः स भवेत्पद्मावतीसञ्ज्ञः ।। ७२ ।। ह्रीं इस मंत्रमें जो हकार है वह पार्श्वजिनका वाचक है, नीचेकी तरफ जो रेफ है वह धरणेन्द्रका वाचक है और जो इसमें बिन्दु सहित ईकार है वह पद्मावती-शासन देवी--का वाचक है। . भावार्थ- ह्रीं यह मंत्र पद्मावती, धरणेन्द्र सहित पार्श्वजिनका श्रोतक है ।। ७२ ॥
त्रिभुवनजनमोहकरी विद्येयं प्रणवपूर्वनमनान्ता । ॐ हीं नमः । एकाक्षरीति सज्ञा जपतः फलदायिनी नित्यम् ॥ ७३ ॥