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त्रैवर्णिकाचा
शौचनिषिद्धस्थान |
'फलकृष्टे जले चित्यां वल्मीके गिरिमस्तके | देवालये नदीतीरे दर्भपुष्पेषु शाद्वले ॥ २२ ॥
कूलच्छायासु वृक्षेषु मार्गे गोष्ठाम्बुभस्मसु ।
अग्नौ च गच्छन् तिष्ठ्श विष्ठां मूत्रं च नोत्सृजेत् ॥ २३ ॥
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जो जमीन हल वगैरह जोतकर साफ की गई हो, जिसमें जल भरा हो, स्मशान हो, चूहे वगैरह के विल हो, पहाड़की चोटी हो, देवस्थान हो, नदीका किनारा हो, जहाँपर काँस पुष्प खड़े हो, घास वगैरह उगी हुई हो, नदीके किनारे पर या पास दरारोंमें छायादार स्थान हो, जहाँ वृक्षोंकी मूल जड़ वगैरह हो, आनेजानेका रास्ता हो, जहाँपर पशु-पक्षी वगैरह एक साथ रहते हों, जहाँपर भस्म (राख, कूड़ा, कचरा वगैरह ) फैली हुई हो और अग्नि रक्खी हो, तो ऐसे स्थानों में कभी टट्टी पेशाबके लिए न बैठे । तथा रास्तेमें चलता या खड़ा टट्टी-पेशाब न करे ॥ २२-२३ ॥
अनुदके धौतवस्त्रे अक्षरलिपिसन्निधौ ।
स्नात्वा कच्छान्वितो भुक्त्वा मलमूत्रे च नोत्सृजेत् ॥ २४ ॥
यदि आसपास कहीं पर जल न हो, धुले हुए साफ वस्त्र पहने हुए हो, पुस्तक वगैरह पासमें हो, स्नान करके धोती वगैरह पहन चुका हो तो टट्टी पेशाव न करे । तथा भोजन करनेके बाद भी इन कामोंको न करे ॥ २४ ॥ .
अग्न्यर्कविधुगोसर्पदीपसन्ध्याम्बुयोगिनः ।
पश्यन्नभिमुखचैतान् विष्ठां मूत्रं च नोत्सृजेत् ॥ २५ ॥
अग्नि, सूरज, चाँद, दीपक, सूर्य, पानी और योगीश्वर इनको देखता हुआ इनके सामने मुँह करके टट्टी-पेशाब करनेके लिए न बैठे ॥ २५ ॥
"अरण्येऽनुदके रात्रौ चोरव्याघ्राकुले पथि ।
सकृच्छ्रमूत्रपुरीषे द्रव्यहस्तो न दुष्यति ॥ २६ ॥ ..
जिस जंगलमें पानी न हो वहाँ यद्यपि टट्टी पेशाब न करे, परन्तु रात्रिका समय हो, मार्ग चोर, सिंह आदि भयानक मनुष्य - पशुओं के आवागमनसे पूर्ण हो, और पेशाबकी बाधा खूब ही सता रही हो; ऐसी दशा में यदि टट्टी पेशाबके लिए बैठ जाय तो हाथमें कुछ होते हुए भी वह दोषका भागी नहीं है ॥ २६ ॥
कृत्वा यज्ञोपवीतं च पृष्ठतः कण्ठलम्बितम् । विण्मूत्रे तु गृही कुर्याद्वामकर्णे व्रतान्वितः ॥ २७ ॥