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त्रैवर्णिकाचार
अब मंत्रोंके जपने योग्य स्थान बताये जाते हैं-
एकान्तस्थानके मन्त्रं मुक्त्यर्थे तु जपेच्छुचौ । स्मशाने दुष्टकार्यार्थ शान्त्याद्यर्थी जिनालये ॥ १११ ॥
'मुक्तिकै अर्थ पवित्र एकान्त स्थानमें, दुष्ट कार्योंके लिए स्मशानमें और शान्तिके लिए जिनालय में बैठकर मंत्रों का जप करे ॥ १११ ॥
श्रीसद्गुरूपदेशेन मंन्त्रोऽयं सत्फलप्रदः ।
तस्मात्सामायिकं कार्यं नोचेन्मन्त्रमिमं जपेत् ॥ ११२ ॥
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श्रीसद्गुरुके परमोपदेश से यह उत्तम फल देनेवाले मंत्र कहे गये हैं, इस लिए सामायिक करना चाहिए, नहीं तो पंच नमस्कार मंत्र का जाप देना चाहिए ॥ ११२ ॥
आकृष्ट सुरसम्पदां विदधती मुक्तिश्रियो वश्यता,
चाटं विपदां चर्तुगतिभ्रुवां निद्वेपमात्मैनसाम् । स्तम्भं दुर्गमनं प्रति प्रतिदिनं मोहस्य संमोहनं,
पायात्पश्ञ्चनमस्क्रियाऽक्षरमयी साऽऽराधना देवता ॥ ११३ ॥
यह अक्षरात्मक पंच नमस्कार रूप आराधन देवता हमारी रक्षा करे; जो स्वर्गीय सम्पदाका आकर्षण करती है, मोक्षलक्ष्मीको वशमें करती है, चारों गतियों में होनेवाली विपत्तिका उच्चाटन -~-~ नाश करती है, पापोंका विनाश करनेवाली है, दुर्गतिसे रोकती है और प्रतिदिन मोहको जीतती है । भावार्थ --- पंचनमस्कार मंत्र जपनेसे उपर्युक्त फलोंकी प्राप्ति होती है । अतः हमेशा प्रात: काल उठकर इस मंत्र को जपना चाहिए ॥ ११३ ॥
ततः समुत्थाय जिनेन्द्रविम्बं पश्येत्परं मङ्गलदानदक्षम् । पापप्रणाशं परपुण्यहेतुं सुरासुरैः सेवितपादपद्मम् ॥ ११४ ॥
जब प्रथम ही शय्यांसे उठकर सामायिक या इस मंत्रका जप कर चुके, उसके बाद चैत्यालयमें जाकर सर्व तरहके मंगल करनेवाले, पापका क्षय करनेवाले, उत्तम पुण्यके करनेवाले और सुर, असुरों द्वारा वन्दनीय श्रीजिनबिंब का दर्शन करे ॥ ११४ ॥
. सुप्तोत्थितेन सुमुखेन सुमङ्गलाय, द्रष्टव्यमस्ति यदि मङ्गलमेव वस्तु ।
अन्येन किं तदिह नाथ तवैव वक्त्रं, त्रैलोक्यमंगलनिकेतनमीक्षणीयम्॥११५॥
और इस प्रकार स्तुति पढ़े कि हे नाथ, प्रातःकाल ही सोकर उठे हुए पुरुषको अपना सब दिन अमन-चैनसे बीतने के लिए यदि कोई मंगल-वस्तु दृष्टव्य है तो इस लोकमें यह तीन लोकके मंगलोंका खजाना तुम्हारा मुख ही है। ऐसी हालतमें अन्य चीजोंके देखनेसे प्रयोजन ही क्या है ॥ ११५ ॥
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