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त्रैवर्णिकाचार। णमो अरहताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूण" यह पंच परमेष्ठीका वाचक, प्राकृत भाषामें पैंतीस अक्षरोंका एक मत्रं है । इसके जपनेसे बड़े बड़े कार्योकी सिद्धि होती है। इससे किसीका भी अनिष्ट नहीं होता । इस मंत्रका महात्म्य बड़ा ही अचित्य है । अतः वीर भगवान के प्रसादसे उनके बताये हुए धर्मका सेवन करते हुए, विषयोंसे ममत्व-भाव छोड़, भक्तिपूर्वक इस महामंत्रका संदेव स्मरण करना चाहिए । इस मंत्रराजका नाम अपराजित मंत्र है जो सर्व तरहके विनोंको क्षणभरमें नाश कर देता है और सब प्रकारके मंगलोंमें यह सबसे पहला मंगल है ॥ ७८-७९-८०॥
स्मर मन्त्रपदोद्भूतां महाविद्यां जगत्सुताम् ।
गुरुपञ्चकनामोत्यां पोडशाक्षरराजिताम् ॥ ८१ ॥ जो सोलह अक्षरोंसे सुशोभित है, पंच गुरुओंके नामसे बनी हुई है, संसारका भला करनेवाली है और जिसका दूसरा नाग मंत्र है, ऐसी महाविद्याका निरन्तर स्मरण करना चाहिए । भावार्थ" अर्हसिन्दाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः" इस सोलह अक्षरोंके मंत्रका हमेशा ध्यान करना चाहिए ॥ ८१ ॥
ॐ नमः सिद्धमित्येतन्मन्त्रं सर्वसुखप्रदम् ।
जपतां फलतीहेष्टं स्वयं स्वगुणजृम्भितम् ॥ ८२॥ ॐ नमः सिद्ध" यह पाँच अक्षरोंका मंत्र है जो सर्व तरहके सुखोंका देनेवाला है और जप करनेवालेको अपने नामके अनुसार ही फल देता है । इन उपर्युक्त मंत्रोंके सिवा और भी कई मंत्र है ।जैसे-" णमो अरिहंताणं " यह सात अक्षरोंका, “अरिहंतसिद्धं नमः" यह आठ अक्षरोंका, “अरिहन्तसिन्दसाधुभ्यो नमः" यह ग्यारह अक्षरोंका, “अरिहंतसिद्धसर्वसाधुभ्यो नमः" यह तेरह अक्षरोंका और “ओं हाँ ही हूँ न्हें हैं हो ही रहः असि आ उ सा सम्यग्दर्शनज्ञानचारिनेम्यो नमः” यह सत्ताई अक्षरोंका इत्यादि ॥ ८२॥
इत्थं मन्त्रं स्मरति सुगुणं यो नरः सर्वकालं, . . ___ पापारिघ्नं सुगतिसुखदं सर्वकल्याणवीजम् । मार्गे दुर्गे जलगिरिगहने सङ्कटे दुर्घटे वा,
सिंहव्याघ्रादिजाते भवभयकदते रक्षकं प्राणभाजाम् ॥ ८३॥ . जो पुरुष उपर्युक्त रीतिसे किसी भी मंत्रका हमेशा स्मरण करता रहता है उसके सभी पापशत्रुओंको वह नाश करता है, उत्तम गतिके सुखोंको देता है, सभी कल्याणोंका कारण है, मार्ग में, दुर्गमें, जलमें, पर्वतमें, गुफाओंमें, वनों में, सिंह आदिके द्वारा उत्पन्न हुए कठिनसे कठिन संकटोंमें सहायक होता है और संसारके सभी भयोंसे प्राणियोंकी रक्षा करता है.८३.॥