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सांमसेनभट्टारकावरचित
wow....... . . . वक्ताका लक्षण । ... ... .. ... ... . सर्वेषां दर्शनानां मनसि परिगतज्ञानवेत्ता भवेद्धि;
वक्ता शास्त्रस्य धीमान्विमलशिवसुखार्थी सुतत्त्वावभासी । .. निर्लोभः शुद्धवाग्मी सकलजनहितं चिन्तकः क्रोधमुक्तो,
गर्वोन्मुक्तो यमाढ्यो भवभयचकितो लौकिकाचारयुक्तः ॥२०॥ .. वह उत्तम वक्ता है जो सब दर्शनोंका जाननेवाला है, बुद्धिमान है,. मोक्ष-उसका चाहनेवाला है, तत्त्वोंके स्वरूपको स्पष्ट समझानेवाला है, लोभ-लालसा राहत है, जिसके वचन.मिष्ट और स्पष्ट है, सभी श्रोताओंके हितकी कामना करता है, क्रोधसे रहित है, सब तरहके गर्वसे विनिर्मुक्त है-नम्र हैं, यम-नियमोंसे युक्त है, संसारके भयसे चकित-दुःखोंसे डरनेवाला है और लौकिक सदाचारसे परिपूर्ण है ॥ २० ॥
ग्रंथ-लक्षण
यस्मिन् ग्रन्थे पदार्था नव दशविधको धर्म एकोऽप्यनेको,
जीवाजीवादितत्त्वानि सुशुभविनयो दर्शनज्ञानचर्याः। . ध्यानं वैराग्यवृद्धिः सुजिनपतिकथा. चक्रिनारायणी वा,. ... .
सोऽयं ग्रन्थस्ततोऽन्या जनमुखजनिता वैकथाऽहो भवेत्सा ॥२१॥ सच्चा शास्त्र वही है जिसमें पुण्य-पाप आदि नौ पदार्थोका, उत्तम क्षमादि दस . धोका, जीवअजीव आदि सात. तत्त्वाका, शुभ विनयका, दर्शन-ज्ञान-चारित्रका और ध्यानका सांगोपांग कथन हैं, जो वैराग्यको बढ़ानेवाला है और तीर्थकर, चक्रवती, नारायण आदि तिरेसठं शलाकाके महापुरुषोंकी जिसमें जीवनी लिखी है । और इससे निराली, मनुष्योंके द्वारा कही गई केवलं शगारादि-युक्त कथाएँ हैं वे सब विकथाएँ हैं ॥ २१ ॥
श्रोताओंके लक्षण | धर्मी ध्यानी दयाढ्यो व्रतगुणमणिभिर्भूषितोऽहो भवेत्सः, __श्रोता त्यागी च भोगी जिनवचनरतो ज्ञानविज्ञानयुक्तः । निन्दादोपादिमुक्तो गुरुपदकमले षट्पदः श्रीसमर्थः,
सच्छास्त्रार्थावधारी शिवसुखमतिमान् पण्डितः सद्विवेकी ॥ २२ ॥ श्रोता-शास्त्र सुननेका पात्र वही है जो धर्मात्मा है, प्रशस्त ध्यान करनेवाला है, दयालु है,.. आहिंसादि व्रत और सम्यक्त्वादि गुणअथवा अष्ट मूल गुणरूप महामाणियोंसे विभूषित है, त्यागीदान देनेवाला-है, भोगी-अपनी सम्पत्तिका योग्य उपभोग करनेवाला-है, जिसकीजैन शास्त्रोंमें अच्छी रुचि है, ज्ञान-विज्ञानसे सहित है, किसीकी निन्दा आदि नहीं करता है, गुरुके चरण-कमलोंमें भौंरेके मानिंद लवलीन है, विभव-सम्पन्न है, शास्त्रके सदुपदेशकी धारणा रखनेवाला है, मोक्षमुखका अभिलाषी है, विद्वान है और उत्तम विचारवान है ॥ २२ ॥