________________
साधना की पूर्व भूमिका | २१ कार्य के लिये तो हम दोनों भाई काफी हैं ? आप आराम करिये, हमें जाने दीजिये।"
राजा ने सिंह की भयंकरता व क्रूरता का वर्णन किया -"पुत्रो, मैं तो अब नदी किनारे का वृक्ष हूं, कभी भी जाना ही है, तुम राज्य की आशाओं के दीपक हो, इस क्यारी के खिलते हुए फूल हो, तुम अभी अपनी रक्षा करो।"
पुत्रों ने बहुत आग्रह किया, अन्त में पिता की अनुमति लेकर दोनों कुमार उधर चल पड़े। पिता ने बहुत से वीर सैनिक और तीक्ष्ण शस्त्र कुमारों के साथ दिये । शालिक्षेत्र में जाकर त्रिपृष्ठ कुमार ने वहां के किसानों को बुलाकर कहा"तुम लोग अब सदा के लिये निर्भय हो जाओगे। मुझे बताओ वह सिंह कहाँ रहता है, मैं एक ही बार में उसका सफाया कर डालता हूं।"
__कुछ किसान हंसे- "कुमार ! आप तो ऐसी बात कर रहे हैं जैसे खरगोश का शिकार करने आये हैं । सैकड़ों राजा यहां आ चुके किन्तु आज तक कोई उसे मार नहीं सका, और आप आते ही उसकी गुफा पूछते हैं कि किधर है । महाराज, वह साधारण सिंह नहीं है, बड़ा भयानक ! खूखार ! उससे सावधान रहिये ।
त्रिपृष्ठ कुमार की भुजायें फड़क रही थीं। बल और साहस जैसे निकल कर बाहर आ रहा था-"आखिर है तो सिंह ही ! चुटकियों में हम उसका शिकार कर डालेंगे-अच्छा तो, देखो, हमारी सब सेना तुम्हारे पास रहेगी, हम दोनों भाई उससे दो-दो हाथ हो लेंगे"-त्रिपृष्ठ कुमार ने गुफा का मार्ग पूछा और उसी दिशा में चल पड़े।
किसानों का और सेना का कलेजा धक् धक् कर रहा था, ऐसा पराक्रमी पुरुष आज तक नहीं देखा । जिस सिंह की दहाड़ से बड़े-बड़े योद्धाओं का कलेजा बैठ जाता है, उस सिंह से लड़ने ये दो किशोर जा रहे हैं । हजारों लोग आश्चर्य के साथ उन्हें देखते रहे।
त्रिपृष्ठ कुमार सिंह की गुफा के पास पहुंचे, दूर से ही सिंह को ललकारा। सिंह दहाड़ता हुआ अपनी मांद से बाहर निकला, उसकी आँखें लाल अंगारे-सी जल रही थीं, जैसे महाकाल गर्ज रिहा हो, सिंह ने भयंकर गर्जना की। पर्वतमालाएं उसकी दहाड़से कांप उठीं । त्रिपृष्ठ ने सिंह को सामने झपटता देखकर शस्त्र दूर फैक दिये, और जैसे किसी मल्ल से कुश्ती लड़ना हो, सिंह के पंजों को हाथ से पकड़ लिया। फिर एक हाथ से उसका नीचे का जबड़ा पकड़ा, और दूसरे हाथ से ऊपर का, और यों चीर डाला जैसे पुराना कपड़ा चीर रहे हों, देखते-ही-देखते सिंह के