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सिद्धान्त-साधना-शिक्षा | २६९ मान को कुंजी है अतः सर्वप्रथम मात्म-स्वरूप का बोध प्राप्त करना चाहिए।]
आत्म-भवा अत्वि में आया उबवाइए। से मायावादी, लोयावादी, कम्मावादी, किरियावादी ।
--आचारांग २१११ यह मेरी आत्मा औपपातिक है, कर्मानुसार पुनर्जन्म ग्रहण करती है। आत्मा के पुनर्जन्म सम्बन्धी सिद्धान्त को स्वीकार करने वाला ही वस्तुतः आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी एवं क्रियावादी है। जे अत्ताणं अन्माइक्खति से लोग अम्माइखति ।
-आचारांग १३१॥३ जो अपनी आत्मा का अपलाप (अविश्वास) करता है, वह लोक (अन्य जीवसमूह) का भी अपलाप करता है।
आत्मा का स्वरूप
अहं अव्वए वि अहं अवढ़िए वि। -जाता० ११५ मैं-आत्मा अव्यय-अविनाशी हूं, अवस्थित- एक रूप हूँ।
जीवा सिय सासया सिय असासया,
बबट्ट्याए सासया मावळ्याए असासया। -भगवती ७२ जीव (आत्मा) शाश्वत भी है, अशाश्वत भी। द्रव्यदृष्टि (मूल-चेतन-स्वरूप) से शाश्वत है। भावष्टि (मनुष्य-पशु आदि पर्याय) से अशाश्वत है। जे आया से विन्नाया, बिन्नाया से माया। अंग विषाणह से माया तं पच्च परिसंखाए ।
-आचारांग १३५५ जो आत्मा है वह विज्ञाता है। जो विज्ञाता है, वह आत्मा है। जिससे जाना जाता है, वह आत्मा है। जानने की इस शक्ति से ही आत्मा की प्रतीति होती है।
हत्यिस्स म एस्स य समे व जीये। -भगवती । स्वरूप की दृष्टि से हाथी में और कुंभा में आत्मा एक समान है।