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२७६ | तीर्थंकर महावीर ब्रह्मचर्य की रक्षा के उपाय जतु जहा उवजोई संवासे विदू विसीएन्ना ।
-सूत्र० ४।१।२६ जैसे अग्नि के निकट रखा लाख का घड़ा पिघल जाता है, वैसे ही स्त्री के संसर्ग में रहने से पुरुष का मन चंचल हो जाता है, अतः स्त्री के साथ एकान्तवास नहीं करना चाहिए।
से जो काहिए, जो पासपिए। णो संपसारए, जो पमाए ॥
जो कयकिरिए वइगुत। -आचा० १२४ ब्रह्मचारी स्त्री-सम्बन्धी शृंगार-चर्चा न करे । स्त्रियों के अंग-उपांग न देखें। उनके साथ अधिक परिचय न करे और न उनसे अपनापन स्थापित करे। बातचीत में भी अधिक मर्यादित रहे।
रसा पगामं न निसेवियन्वा ।
पायं रसा वित्तिकरा नराणं॥ -उत्त० ३२।१० ब्रह्मचारी को रसयुक्त पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए । क्योंकि रस प्रायः उत्तेजना पैदा करते हैं । जिससे ब्रह्मचर्य में स्खलना होने की संभावना रहती है।
बालमो पीवगाइजो, पीकहा ५ मनोरमा। संपवो चेव नारीणं, तासि इन्दियरिसणं ।। कुइयं मयं गोय, हसियं मुत्तासियाणि य। पणीयं भत्तपाणं , अइमाचं पाणमोयणं॥ गत्तभूसण मिळंच काम भोगा प तुन्जया। नरसातगवेसिस्स विसं तालसं जहा॥
-उत्तरा० १६०११-१३ आत्मा का हित चाहनेवाले ब्रह्मचारी के लिए ये दस बातें तालपुट जहर के समान अहितकारी हैं
१. स्त्रियों से संकुल स्थान, २. स्त्रियों की मनोहर कथा, ३. स्त्री-सहवास और परिचय ४. स्त्रियों की इन्द्रियों का निरीक्षण, ५. उनके कूजन-रुदन, गीत और हास्य सुनना ६. स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठना, ७. स्निग्ध रसदार भोजन करना, ८. बहुत अधिक भोजन करना, ९. शरीर का श्रृंगार करना, १०. काम-भोग (शब्द-रूप आदि विषयों में) आसक्ति रखना।