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२६.तीर्थकर महावीर
संविमागीमा तस्स मोक्यो। --दश ६।२।१३ वो संविभागशील-अपनी प्राप्त सामग्री को बांटता नही है उसकी मुक्ति नहीं होती।
याव सित्वपरनामगोतं कम्म निबंधह। -उत्त० २६५४३ वैयावृत्य (सेवा) से आत्मा तीर्थकर होने जैसे उत्कृष्ट पुण्य कर्म का उपार्जन
नैतिक-नियम
पातिवेलं हसे मुनी। -सूत्र. १९२६ मर्यादा से अधिक नहीं हंसना चाहिए ।
नयावि पन्ने परिहास कुन्ना । -सूत्र. १।१२।१६ बुद्धिमान किसी का उपहास न करें।
अपच्छिमो नमासिन्दा भासमानस्स अंतरा।
पिहिमसन लाइन्ना मायामोसं विवजए॥ -दश० ८।४७ बिना पूछे नहीं बोले, बीच में न बोलें, किसी की चुगली न खावे और कपट करके मूठ न बोले।
अट्ठावयं न सिक्वेन्ना बेहाइयं मोबए। -सूत्र० १६१७ जुआ खेलना न सीखे, जो बात धर्म से विरुद्ध हो, वह न बोले ।
निहनबह मनिचा सप्पहासं विवन्जए। -दश ६।४२ अधिक नींद न ले और हंसी मजाक न करे। अनुनविय गेहियवं।
-प्रश्न० २।३ दूसरे की कोई भी वस्तु माझा लेकर ग्रहण करनी चाहिये।
माइपन्य, भीतं मया मइति लायं। -प्रश्न० २।२ . भय से डरना नहीं चाहिए । भयभीत मनुष्य के पास भय शीघ्र माते हैं।
नयावि मोपलो गुल्हीलगाए। - दश० ६।१७ गुरुजनों की अवहेलना-अवज्ञा करने वाला कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर
सकता।
म बाहिरं परिभवे, मत्ता नसमुक्कसे ।
सुयलामे न मचिन्ना बच्चा तवास लिए। -दश० ८।३० बुद्धिमान किसी का तिरस्कार न करे, न अपनी बड़ाई करे । अपने शास्त्रमान, पाति और तप का अहंकार न करें।