Book Title: Tirthankar Mahavira
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 304
________________ सिद्धान्त-साधना-शिक्षा | २९१ समाहिकारए तमेव समाहि पडिलमा । -भगवती १ जो दूसरों को समाधि (सेवा-सुख) पहुंचाता है वह स्वयं भी समाधि प्राप्त करता है। महऽसेवकरी बन्नेसि इषिणी। -सूत्र० १२।२।१ दूसरों की निन्दा हितकर नहीं है। नो पूर्ण तवसा आवहन्या।। -सूत्र० १७२७ तप के द्वारा पूजा-प्रतिष्ठा की कामना नहीं करना चाहिए। गिहिवासे वि सुब्बए। -उत्त० ५।२४ धर्म-शिक्षा सम्पन्न गृहस्थ गृहवास में भी सुव्रती है। पियंकरे पिपंवाइ से सिक्ल लधुमरिहह। -उत्त० ११।१४ प्रिय (अच्छा) कार्य करने वाला और प्रिय वचन बोलने वाला अपनी अभीष्ट शिक्षा प्राप्त कर सकता है। मह पन्नरसहि गहि सुषिणीए ति बच्चाह । नीयावती अचवले अमाई अकुमहले ॥ अगं पाहिक्खिवह पबन्धं च न कुम्वा । मेतिन्जमाणो भयह सुयं लघु न मन्जह ॥ न य पाव परिक्वेवी, न य मित्तेसुकुप्पई। अप्पियस्सावि मित्तस्स, हे पल्लाप भासई॥ कलह उमर बन्नए बुद्दे अमिजाइए। हिरिमं परिसंलोणे, सुविणीए ति बुच्चई ।। -उत्त० ११।१०-१३ इन पन्द्रह कारणों से सुविनीत कहलाता है १. जो नम्र है, २. अचपल है-अस्थिर नहीं है, ३. दम्भी नहीं है, ४. अकुतहली है-तमाशबीन नहीं है । ५. किसी की निन्दा नहीं करता है, ६. जो अधिक कोष नहीं करता, ७. जो मित्रों के प्रति कृतज्ञ है, ८. श्रुत को प्राप्त करने पर अहंकार नहीं करता है । ६. स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार नहीं करता है। १०. मित्रों पर कोष नहीं करता है। ११. जो अप्रिय मित्र के लिए भी एकान्त में भलाई की बात करता है। १२. जो वाक्-कलह और उमर-मारपीट, हाथापाई नहीं करता है, १३. अभिजात (कुलीन) होता है, १४. लज्जाशील होता है, १५. प्रतिसलीन (घर-उधर की व्यर्ष चेष्टाएं न करने वाला बात्मलीन) होता है, वह बुद्धिमान् साधु विनीत होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 302 303 304 305 306 307 308