Book Title: Tirthankar Mahavira
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 287
________________ २७४ | तीर्थकर महावीर एवं नामिणो सारं न हिलइ किचन । अहिंसा समयं चेव एतावन्तं विवाषिया ॥ -सूत्र० १११।४।१० ज्ञानी होने का सार यही है कि किसी भी प्राणी की हिंसा न करे । अहिंसामूलक समता ही धर्म का सार है, बस, इतनी बात सदैव ध्यान में रखनी चाहिये। तुमंसि नाम स चेव च हंतवं ति मनसि । -आचा० ११२५ तू जिसे मारना चाहता है, (जिसको कष्ट व पीड़ा पहुंचाना चाहता है) वह अन्य कोई तेरे समान ही चेतनावाला प्राणी है, ऐसा समझ । वास्तव में वह नाइवाएन्ज कंच... नय बित्तासए परं -उत्त० २।२७ किसी की हिंसा मत करो, किसी को पास मत पहुंचानो। मैत्ति भूएसु कप्पए। सब जीवों के प्रति मैत्रीभाव रखना चाहिए । ____भारंमचं दुपमि। -आचा. १११ संसार में जितने भी दुःख हैं, वे सब आरंभज-हिंसा से उत्पन्न होते हैं। सत्य पुरिसा ! सच्चमेव सममिवाणाहि । सच्चस्स आपाए उपढिए मेहाबी मारं तरा।। - आचारांग ॥३ हे पुरुष ! सत्य को सम्यक् प्रकार से समझो। सत्य की आराधना करनेवाला बुद्धिमान मृत्यु को तिर जाता है। सच्चं लोगम्मि सारभूयं । -प्रान० २२ सत्य ही लोक में सारभूत है। मुसाबामो य लोगम्मि सम्म साहहिं गरहिनो। अविस्सासोप भूया तम्हा मोसं विवन्यए ॥ -दश० ६.१३ सभी सत्पुरुषों ने मृषावाद - असत्य की निंदा की है । असत्यवादी का कहीं कोई विश्वास नहीं करता । बतः असत्य का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए।

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