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सिद्धान्त-साधना-शिक्षा | २७५ जाय सन्चा अवतब्बा सच्चा मोसा पजा मुसा।
जाय पुहिग्णाइजान तं भासेज्न पनवं॥ -दश ७२ जो भाषा सत्य होने पर भी बोलने योग्य न हो, तथा जो कुछ सत्य कुछ असत्य हो, अथवा पूर्ण असत्य हो, एवं समझदार लोग जिस भाषा को उचित न मानते हों, ऐसी भाषा न बोले ।
असचमोसं सच्चं च अणवन्नमकक्कसं ।
समुप्पेहमसंवि गिरं भासेन्ज पन्नवं ॥ -दश० ७३ बुद्धिमान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए, जो व्यवहार में सत्य हो, तथा निश्चय में भी सत्य हो, निर्वच हो, अकर्कश-प्रिय हो, हितकारी हो तथा असंदिग्ध हो।
अस्तेय इच्छा, मुच्छा, तम्हा गेहि असंजमो, कंखा।
हत्य लहुतणं परहरं तेणिक्कं कुण्या मदते ॥ --प्रश्न० १३१० परधन की इच्छा, मूर्छा, तृष्णा, गुप्ति, असंयम, कांक्षा, हस्तलाघव (हाथ की सफाई), परधन-हरण, कूट-तोल माप और बिना दी हुई वस्तु लेना ये सब कृत्य चोरी हैं।
चितमंतमपितं वा अप्पं वाइवा बहुं।
बंतसोहणमित्तपि उग्गहं सि अजाइया ॥ -दश० ६।१४ चाहे कोई सचेतन वस्तु हो या अचेतन-जड़ । अल्पमोली वस्तु हो या बहुमोली। बिना उसके स्वामी की आज्ञा लिए बिना नहीं लेना चाहिए, और तो क्या, दात कुरेदने के लिए एक तिनका भी बिना माझा के न लेवें।
ब्राह्मचर्य विषय सील तब नियम गुण समूह तंबंध भगवंतं ।
गहगण मयत तारगाणं वा बहा उदुपती ॥ -प्रश्न० २।४ जैसे-ग्रह, नक्षत्र और तारामों में चन्द्रमा श्रेष्ठ है, वैसे ही विनय, शील, तप, नियम मादि गुणसमूह में प्राह्मचर्य श्रेष्ठ है, प्रधान है। ब्रह्मचर्य स्वयं भगवान के तुल्य है।
देवदानव गंधा बस स्लस किन्नरा।
बंभवारि नमंसति दुक्कर में करंति तं। उत्तरा० १६१६ जो दुष्कर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है, उसके चरणों में-देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, किलर, सभी नमस्कार करते हैं।