________________
२७२ | तीर्थकर महावीर
माणं जो महन्तं तु सपाहेन्जो पवज्बई । गच्छन्तो सो सुही होह छुहा तम्हा विवन्जिनो। एवं धम्म पि काळणं जो गच्छह परं भवं । गच्छन्तो सो सुही होइ अप्पकम्मे अवेयगे ।
-उत्तरा० १९२१-२२ जो व्यक्ति पाथेय (मार्ग का सम्बल) साथ में लेकर लम्बे मार्ग पर चलता है, वह चलते हुए भूख और प्यास के दुःख से मुक्त रह कर सुखी होता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति धर्म करके परभव में जाता है, यह अल्पकर्मा (कर्म भार से हलका) होकर जाते हुए वेदना से मुक्त, सुखी होता है।
अहिंससच्चं च अतेणगं च ततो य बमं अपरिग्गहं च । परिवन्जिया पंच महन्वयाई चरिन्ज धम्मं जिणदेसियं विउ ।
-उत्त० २१११२ अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-ये पांच महाव्रत कहे गये हैं । इन महावतों को स्वीकार कर विद्वान जिन-देशित धर्म का आचरण करे । धमण धर्म
अट्ठ पवयणमायाओ समिई गुत्ती तहेव य।
पंचेव य समिईओ तो गुत्तोउ आहिया ॥ -उत्त० २४१ समिति और गुप्ति रूप आठ प्रवचन मातायें कही गई हैं । समितियां पांच हैं और गुप्तियां तीन हैं।
इरिया भासेसणादाण उच्चारे समिई इय । मणगृती वयगृती कायगुत्तीय अट्ठमा ।
-उत्तराध्ययन २४१२ - ईर्या-समिति, भाषा-समिति, एषणा-समिति, आदान-समिति और उच्चारसमिति-ये पांच समिति तथा मनगुप्ति, वचन गुप्ति और काय-गुप्ति ये तीन गुप्ति, इस प्रकार ये आठ प्रवचन माता कही गई हैं।
बसविहे समगषम्मे पणते, तं जहाखती, मुत्ती, अन्नवे, महवे, लाघवे, सच्चे, संगमे, तबे, चियाए, मचेरवाले।
-स्थानांग १० धमणधर्म दस प्रकार का है, यथा-१. क्षमा, २. निर्लोभता, ३. सरलता, ४. मृदुता, ५. लघुता, ६. सत्य, ७. संयम, ८. तप, ६. त्याग, १०. ब्रह्मचर्य ।