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कल्याष यात्रा | २९ भी अनेक परिव्राजक भगवान् के पास, उनके शिष्यों -गौतम बादि के पास तपा श्रमणोपासकों के साथ भी तत्त्व-चर्चा करते रहे हैं और उचित समाधान पाकर श्रमणधर्म में दीक्षित भी होते रहे हैं। कालोदायी आदि परिव्राजकों की तत्त्व-चर्चा का वर्णन मद्दुक श्रावक के प्रसंग में दिया गया है, उसके कुछ ही समय के बाद पुनः वे परिवाजक भगवान महावीर के पास आये, जिसका वर्णन इस प्रकार है
कालोदायी-शेलोदायी आदि परिवाजकों ने मद्दुक श्रमणोपासक के साथ तत्वचर्चा करने के बाद समाधान तो पाया, पर उनकी जिज्ञासा का वेग शांत नहीं हुआ, बल्कि और अधिक तीव्र हो गया। वे समय-समय पर श्रमण महावीर के तत्त्व-दर्शन पर चर्चा करते रहे।
एक बार कालोदायी आदि परिव्राजकों में महावीर द्वारा प्ररूपित पंचास्तिकाय की चर्चा चल रही थी, उसी समय गणधर इन्द्रभूति उन्हें राजगह के परिपार्श्व में दिखाई दिये । वे सभी गौतम के पास आये और बोले-"गौतम ! आपके धर्माचार्य पांच अस्तिकायों में एक को जीवकाय तथा चार को अजीवकाय बताते हैं, एक को रूपीकाय तथा चार को अरूपीकाय बताते हैं-इसका क्या रहस्य है ?"
गौतम-"देवानुप्रियो ! जो अस्ति है (है), उसको अस्ति और जो नास्ति (नहीं है), उसको नास्ति कहा जाता है, इसका रहस्य तो आप स्वयं सोचिए !"
गौतम के रहस्यपूर्ण उत्तर से परिव्राजक और उलझन में पड़ गए । वे गोतम के पीछे-पीछे चलकर श्रमण भगवान की धर्म-सभा में आये।'
भगवान महावीर ने परिव्राजकों के मन की बात प्रकट करते हुए कहा"कालोदायिन् ! तुम्हारी सभा में पंचास्तिकाय पर जो चर्चा चल रही थी, उसके विषय में अधिक स्पष्ट जानने के लिए ही तुम लोग यहां आये हो .....?"
"जी हां, ऐसा ही है"-कालोदायी ने कहा और अधिक उत्कंठा से वे भगवान से अपनी शंकाओं का समाधान पूछने लगे। भगवान् ने विस्तार के साथ उनकी शंकाओं का समाधान करते हुए कहा-"कालोदायी ! धर्म, अधर्म, आकाश, पुदगल और जीव ये पांच अस्तिकाय हैं । इनमें पुद्गल रूपीकाय है शेष चार अरूपीकाय हैं।"
कालोदायी-"भगवन् ! क्या धर्म, अधर्म आदि अरूपीकाय पर कोई सो सकता है, बैठ सकता है ?" १ दीक्षा का ३४ वा वर्ष-पीष्म काल वि.पू. ४७६-४७८