Book Title: Tirthankar Mahavira
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 263
________________ २५० | तीर्थंकर महावीर का क्षय किया और भगवान महावीर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए। एक प्रचंड ज्ञानज्योति सहसा लुप्त हो गई । संसार में सघन अन्धकार छा गया । क्षण भर के लिए स्वर्ग भी अन्धकार में व्याप्त हो गया। इन्द्रभूति गौतम को भगवान के निर्वाण का सम्वाद मिला । उनके श्रद्धाविभोर हृदय पर वन-सा आघात हुआ। वे मोह एवं स्नेह में विह्वल हो विलाप करने लगे। भगवन् ! यह आपने क्या किया? इस अवसर पर मुझे दूर क्यों भेज दिया ? क्या में बालक की तरह आपका अंचल पकड़कर मोक्ष जाने से रोक लेता था?... अब मैं किस को प्रणाम करूंगा, किससे अपनी जिज्ञासाओं का समाधान करूंगा. यों भगवान के सुखद सानिध्य की स्मृतियों को ताजा कर-कर आंसू बहाने लगे। विह्वलता का तूफान जैसे ही शांत हुमा । गौतम के अन्तर् में ज्ञान की ज्योति बगी। सोचने लगे-"वीतरागों के साथ स्नेह कैसा ? मोह कसा? यह देह तो जड़ है, इसका त्याग किये बिना मुक्ति कैसे होगी ? प्रभु देह त्यागकर मुक्त हो गये, अब मुझे भी तो उमी पथ पर बढ़ना है।" इस प्रकार चिन्तन में लीन होते ही गौतम के मोह-आवरण हटने लगे। भावना की विशुद्धता तीव्र होने लगी। क्षण भर में स्नेह के बंधन टूट गये, ज्ञान के आवरण सर्वथा विलीन हो गये और गौतम को केवलज्ञान प्राप्त हो गया। वह थी अमावस्या की पश्चिम रात्रि ! अन्तिम प्रहर ! निर्वाण-कल्याणक जिस रात्रि में भगवान् का निर्वाण हुआ, उस रात को नौ मल्लवी नो लिच्छवी, ये काशी-कोशल देश के अठारह गणराजा पोषधव्रत में थे। इधर ज्ञान का दिव्य भास्कर अस्त हो गया. संसार गहन अंधकार में डूबा गया, प्रकृति भी अन्धकार फैला रही थी, अतः उस अन्धकार को दूर करने के लिए देवताओं ने रत्नों के दीपक जलाकर प्रकाश किया। भगवान कर्मबंधनों से मुक्त होकर निर्वाण को प्राप्त हुये अतः उनका देहत्याग भी उत्सव के रूप में परिणत हो गया। देवताओं के गमनागमन से भूमंडल आलोकित हो गया। मनुष्यों ने भी दीपक जलाये, चारों ओर प्रकाश-हीप्रकाश फैल गया। प्रातःकाल उस लोकोत्तर पुरुष के पार्थिव देह की अन्त्येष्टि की गई । संसार से एक दिव्य ज्योति विलीन हो गई।' १ वि. पू. ४७० । ई.पू. ५२८, नवम्बर

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