Book Title: Tirthankar Mahavira
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 275
________________ २६२ | तीर्थकर महावीर सउनी बह पंसुरिया, बिहुणिय घसयह सि वं। एवं बविमोवहाण, कम्मं सब तबस्ति माहले ॥ -सूत्र० २१११५ जिस प्रकार शकुनी नाम का पक्षी अपने परों को फड़फड़ा कर उन पर लगी धूल को माड़ देता है, उसी प्रकार तपस्या के द्वारा मुमुक्ष अपने कृत-कर्मों का बहुत शीघ्र ही अपनयन (क्षय) कर देता है। तप के प्रकार तयो य दुविहो तो बहिरानंतरो तहा। -उत्त० २८१३४ तप दो प्रकार का कहा गया है-बाह और आभ्यन्तर। अगसणभूणोयरिया, मिक्वायरिया प रसपरिचामो । काफिलेसो संलोणया घ, बन्सो तबो होई॥ -उत्त० ३० (१) अनशन', (२) ऊनोदरी, (३) भिक्षाचरी, (४) रस-परित्याग', (५) काय-क्लेश और (६) प्रतिसंलीनता-ये छह बाह्य तप हैं। पायच्छितं विणमो, बेगावच्चं तहेव समाओ। माणं च विउस्सग्गो, एसो बम्भितरो तबो॥ -उत्त० ३०३० (१) प्रायश्चित्त, (२) विनय, (३) बयावृत्य, (४) स्वाध्याय'', (५) ध्यान' और (६) व्युत्सर्ग'२. ये छह माभ्यन्तर तप हैं। १. कुछ दिन या जीवन-भर के लिए आहार का त्याग करना । २. आहार एवं कषाय आदि को कम करना। ३. भिक्षावृत्ति में विविध संकल्पों (अभिग्रहों) द्वारा संकोच करना। ४. दूध-दही बी-मिठाई आदि विगय का त्याग करना । ५. पद्मासन बादि द्वारा शरीर को साधना । ६. शरीर तथा क्रोधादि का निग्रह करना। ७. प्रमाद होने पर उसके लिए मानसिक पश्चात्ताप करना तथा गुरुजनों के ____ समक्ष आलोचना कर शुद्ध होना । ८. बड़ों का विनय, छोटों का बादर करना। १. सेवा करना। १०. सत् शास्त्रों का विधि पूर्वक अध्ययन-चिन्तन करना।

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