________________
२४८ | तीर्थकर महावीर बाहिर राग ही था, बधन था, मुक्ति का अवरोधक था । भगवान् ने कई बार गौतम को उद्दिष्ट कर सूचित भी किया कि तुम्हारा यह स्नेहबंधन पूर्ण वीतरागता में बाधक है।
एक बार का प्रसंग है कि भगवान् ने साल-महासाल मुनियों को उनके पूर्वजीवन की राजधानी पृष्ठचंपा में उपदेश देने के लिए भेजा। इन्द्रभूति उनके अग्रणी बनकर साथ में गये। पृष्ठचंपा का राजा गालि साल-महासाल मुनि का मागिनेय (भानजा) था। वह उपदेश सुनकर प्रतिबुद हुमा, उसके पिता पिठर व माता यशोमति भी विरक्त हुई। सभी ने गौतम के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली।
गौतम, साल-महासाल तथा गागलि, पिठर यशोमति आदि को साथ लिये भगवान् महावीर की वंदना करने चंपा की ओर आये । मार्ग में शुभ अध्यवसाय की विशिष्टता के कारण पांचों को केवलज्ञान हो गया, गौतम को इसका पता नहीं था। भगवान के समवसरण में आते ही उन्होंने पांचों की ओर संकेत कर कहा-"आओ ! तुम भगवान् की वंदना करो।"
केवलज्ञानी को किसी के उपदेश व आदेश की अपेक्षा नहीं होती। अतः भगवान् महावीर ने गौतम से कहा-"गौतम ! तुम केवलज्ञानियों की अशातना कर
गौतम आश्चर्यचकित-से रह गये-कैसे ? भगवान ने पांचों ही श्रमणों के केवलज्ञानी होने की सूचना दी । गौतम सोचने लगे-"मैंने जिनको अभी-अभी दीक्षा दी, वे तो केवलज्ञानी हो गये, और मैं इतने वर्ष से संयम-साधना कर रहा हूं, मुझे अभी तक भी केवलज्ञान नहीं हुआ? क्या मेरा ज्ञानावरण इतना सघन है? या चारित्र-साधना में कहीं कुछ स्खलना हो रही है ? जिस कारण मुझे केवलज्ञान नहीं हो रहा है? मुझे इस भव में सिद्धि (मुक्ति) मिलेगी भी या नहीं.......?" इसी विचार में गौतम गंभीर हो गए। उनके मन में उदासी छा गई, आँखों में खिन्नता भर गई।
भगवान् ने प्रसंग देखकर गौतम की खिन्नता को दूर करते हुए कहा"गौतम! तुम्हारे मन में मेरे प्रति अत्यधिक स्नेह-राग है, इस स्नेह की जड़ें बहुत महरी है, पूर्व के अनेक भवों में तुम और में साथ-साथ रहे हैं, परस्पर गहरे मित्र, स्नेही और सम्बन्धी भी रहे हैं। इस पूर्व-परिचय, पूर्व-स्नेह एवं दृढ़ अनुराग के सूत्र बब भी तुम्हारे हृदय में हैं, और तुम मेरे प्रति अत्यधिक स्नेह रखते हो । इसी कारण तुम बब तक अपने मोहावरण का भय नहीं कर पाये और केवलज्ञान से वंचित रहे हो। हां, बब तुम शीघ्र ही मोह का क्षय कर पाबोगे, केवली बनोगे। देहत्याग के