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२४६ | तीर्थकर महावीर फिर लगभग ३० वर्ष तक भूमंडल में धर्मयात्रा करते हुए हजारों-लाखों आत्माओं को भव-सागर तैरने में सहायक बने।
भगवान् महावीर ने जीवन का अन्तिम वर्षावास अपापा (पावापुरी) में किया। भगवान को ज्ञात था कि यह उनके जीवन का अन्तिम वर्ष है, और गौतम आदि उनके शिष्य भी इस भावी प्रसंग से अपरिचित नहीं थे। इसलिए सब के मन में जिज्ञासाएं उठ रही थीं-भगवान् की विद्यमानता में यह युग पूर्ण सुखमय है, इनके पश्चात् भारतवर्ष की क्या स्थिति होगी? शिष्यों की जिज्ञासा को लक्ष्य कर भगवान् महावीर ने आने वाले युग (पांचवें आरे) के सम्बन्ध में कुछ स्पष्ट बातें बताई । अपनी देशना में भगवान् ने कहा
"तीर्थकरों की विद्यमानता में यह भारतवर्ष सब प्रकार से सुखी एवं सम्पन्न रहता है । लोगों में परस्पर मैत्री, स्नेह एवं सहयोग की भावना रहती है । इस समय के गांव, नगर जैसे; नगर, देवलोक जैसे; कौटुम्बिक, राजा जैसे और राजा, कुबेर जैसे समृद्ध व उदार होते हैं । आचार्य इन्द्र के समान, माता-पिता देव के समान, सासश्वसुर माता-पिता के समान होते हैं। जनता धर्माधर्म के विवेक से युक्त, विनीत, सरल, भद्र, सत्य-शीलसम्पन्न तथा देव-गुरु एवं धर्म के प्रति समर्पित होती है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, दुर्भिक्ष, महामारी जैसे उपद्रव नहीं होते।
"अब, जब तीर्थकर, चक्रवर्ती आदि नहीं होंगे; केवलज्ञान जैसे विशिष्ट ज्ञान एवं आत्म-विभूतियों का लोप हो जायेगा। देश की स्थिति क्रमशः बिगड़ती जायेगी। समय पर वृष्टि नहीं होगी, कहीं बाढ़ें आयेंगी, कहीं दुर्भिक्ष पड़ेगा। अनेक संक्रामक तथा कठिन रोग फैलेंगे । मनुष्य में क्रोध-काम-लोभ आदि वृत्तियां प्रबल हो जायेंगी, विवेक घटेगा, स्वार्थ बढ़ेगा, विनय कम होगा, उदंडता तथा दुर्नीतियां बढ़ेंगी । मर्यादाएं छिन्न-भिन्न हो जायेंगी, चोर अधिक चोरी करेंगे, राजा अधिक कर लेंगे, गुरु शिष्यों को ज्ञान नहीं देंगे, शिष्य गुरुजनों का अपमान करेंगे। भिक्ष-भिक्षुणियों में भी कलह व आचारशैथिल्य बढ़ेगा। दान-शील-तप की हानि होगी, मात्स्य-न्याय से सबल दुर्बल को सताते रहेंगे । सज्जन संत्रास भोगेंगे।
पांचवें आरे के बाद छठा मारा आयेगा, वह अत्यंत कष्टमय होगा। अव. संपिणी काल के रूप में यह अर्ध-कालचक्र समाप्त होगा, फिर उत्सपिणी काल के आरे क्रमशः चलेंगे। इस प्रकार भगवान ने बीस कोटाकोटि प्रमाण कालचक्र की गति एवं उसका जन-जीवन पर जो प्रभाव होगा, उसका वर्णन किया।
भगवान् की देशना से अनेक भव्यों के मन में वैराग्य जगा. अनेक पदाशील व्यक्ति भावी अनिष्ट की आशंका से मन में बरा उदास भी हो गये। सब को बब