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२३० । तीर्थकर महावीर सोमिल-भंते ! सरिसवय भक्ष्य है या अभक्ष्य है ? भगवान-भक्ष्य भी है, और अभक्ष्य भी। सोमिल- कैसे? भगवान- "सरिसवय के दो अर्थ हैं-मित्र और सर्षप (धान्य) । मित्र सरिसवय
तीन प्रकार के होते हैं : सहजात, सहवर्धित तथा सहप्रांशु-क्रीडित । ये सरिसवय (मित्र) अभक्ष्य होते हैं । सरिसवय धान्य के भी दो भेद हैं : शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत । शस्त्रपरिणत सर्षप (अग्नि आदि के द्वारा जीवरहित किया हुआ) अगर एषणीय हो, याचना करने पर प्राप्त होता हो तो वह भक्ष्य है।" इसीप्रकार मांस और कुलत्था आदि शब्दों के श्लेष अर्थ की व्याख्या करके भगवान ने अपेक्षाप्रधान उत्तर
दिये । तदनन्तर सोमिल ने पूछा - "मंते ! आप एक हैं या दो ?" भगवान्-मैं एक भी हूं तथा दो भी। सोमिल-भगवन् ! यह कैसे ? भगवान् --- "मैं आत्म-द्रव्य रूप से एक हूं तथा ज्ञान-दर्शन स्वरूप से दो।" सोमिल-आप अक्षय, अव्यय और अवस्थित (सदा नित्य) हैं या भूत, वर्तमान,
भविष्यद्रूपधारी भी? भगवान्-दोनों ही हूं। मैं आत्म-प्रदेशों की अपेक्षा से अक्षय, अव्यय तथा अव
स्थित हूं, किंतु उपयोग-पर्याय की अपेक्षा से भूत, वर्तमान, भविष्य
नानारूपधारी भी हूं।" __इस प्रकार ज्ञानगोष्ठी करते हुए सोमिल को सभी प्रश्नों का उचित समाधान मिला अतः वह भगवान के प्रति श्रद्धाशील बन गया। श्रावक के व्रत धारण कर उसने जीवन को धर्म-साधना में लगा दिया।'
गौतम को ज्ञानगोष्ठियां
इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर के प्रमुख अंतेवासी थे, और बहुत गहरे जिज्ञासु भी ! किसी भी नवीन वस्तु को देखकर, नयी बात सुनकर उनके मन में संशय, कुतूहल एवं जिज्ञासा उत्पन्न होती, वे तुरन्त भगवान के पास आते और उनका यथार्थ निर्णय जानते। इतने दीर्घकाल में गौतम ने भगवान् से हजारों ही प्रश्न पूछ होंगे। वास्तव में गौतम के प्रश्नोत्तरों का संकलन ही वर्तमान मागम कहे
१ सरिसवय-सहावयाः -मित्रम्, सर्वपकाः -धान्यम् । २ भगवती सूत्र, शतक १८ । उद्देशक १.