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कल्याण-यात्रा | २२९ भगवान्-"१ पादोपगमन -
(ध्यानपूर्वक निश्चल दशा में बनशन के साथ प्राण त्याग करना) २ भक्त-प्रत्याख्यान
(अनशन करके समाधिपूर्वक शरीर क्रियाएं करते हुए प्राण त्यागना) इस प्रकार की दशा में प्राण त्याग करने वाला जन्म-मरण की परम्परा को घटाता है।"
इस प्रकार अनेकांत-दृष्टियुक्त समीचीन उत्तरों से स्कन्दक को पूर्ण समाधान मिला।' सोमिल की शानगोष्ठी
सोमिल वाणिज्यग्राम का विद्वान ब्राह्मण था। उसके पास पांचसो विद्यार्थी अध्ययन करते थे। भगवान महावीर जब वहां के इतिपलाश चैत्य में पधारे तो सोमिल अपने सौ छात्रों के साथ उनके पास आया और उसने भगवान से निम्न प्रश्न पूछेसोमिल-भंते ! आपके सिद्धान्त में यात्रा, यापनीय, अव्याबाध और प्रासुक
विहार है ? भगवाद-हाँ, यात्रा आदि सभी बातें हैं....? सोमिल-आपकी यात्रा क्या है ? भगवान्-तप, नियम, संयम, स्वाध्याय, ध्यान और आवश्यक आदि योगों में
यतना-उद्यम करना, यही मेरी यात्रा है। सोमिल-आपका यापनीय क्या है ? भगवान् - पांच इन्द्रियों को अपने वश में रखना इन्द्रिय-यापनीय है, तथा चार
कषायों का प्रादुर्भाव न होने देना नोइन्द्रिय-यापनीय है। सोमिल--आपका अव्याबाध क्या है ? भगवान् मेरे शरीरगत सभी दोष उपशांत हो गये हैं, यही मेरा अव्याबाध है। सोमिल - प्रासुक विहार क्या है ? भगवान-मैं आराम-उद्यान, देवकुल तथा सर्वथा निर्दोष स्थानों में विचरता हूं,
यही मेरा प्रासुक विहार है।"
१ भगवती सूत्र, शतक २ । दशक