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कल्याण-यात्रा | २३१ जा सकते हैं । अनुश्रुति है कि भगवतीसूत्र में ही गौतम द्वारा किये गये छत्तीस हजार प्रश्नोत्तरों का संकलन हमा है। गौतम के सभी प्रश्नोत्तरों का विवरण एक स्वतंत्र ग्रंथ का विषय है । यहां पर कुछ ही प्रश्नोत्तर दिये जाते हैं, जिनसे गौतम के प्रश्नों की शैली तथा भगवान महावीर की चितनदृष्टि की एक झलक प्राप्त हो जायेगी।
कर्म-व्यवस्था 'कर्म सिद्धान्त' भगवान महावीर का मुख्य सिद्धान्त था। इस विषय में गौतम ने समय-समय पर अनेक प्रश्न किये, जिनमें से एक-दो प्रश्न यहां प्रस्तुत हैं । गौतम-भंते ! जीव दीर्घकाल तक दुःखपूर्वक जीने के योग्य कर्म क्यों व किस
कारण से करता है? भगवान-गौतम ! हिंसा करने से, असत्य बोलने से तथा श्रमण-ब्राह्मणों की हीलना,
निंदा एवं अपमान करने से, उन्हें अमनोज आहार पानी देने से जीव दुःख
पूर्वक जीने योग्य अशुभकर्म का बंध करता है।" गौतम-मंते ! जीव दीर्घकाल तक सुखपूर्वक जीने योग्य कर्म किस कारण से
बांधता है? भगवान - गौतम ! हिंसा व असत्य की निवृत्ति से तथा श्रमण-ब्राह्मणों को वंदना
उपासना करके प्रियकारी निर्दोष आहार-पानी का दान करने से जीव
शुभ दीर्घायुष्य का बंध करता है।' गौतम-भंते ! यह जीव भारीपन कैसे प्राप्त करता है? भगवान गौतम ! प्राणातिपात आदि मठारह पापस्थानों के सेवन से जीव (कर्म
रजों से) भारी होता है। गौतम-भंते ! जीव लघुत्व कैसे प्राप्त करता है ? भगवान - गौतम ! प्राणातिपात आदि अठारह पापस्थानों से निवृत्ति करने पर जीव (कों से) लघुता प्राप्त करना है।
विश्व-व्यवस्था भगवान महावीर के दर्शन के अनुसार यह विश्व (षड्द्रव्यात्मक लोक) अनादि एवं अनन्त है। एक बार भगवान महावीर राजगृह में विराजमान थे, तब इन्द्रभूति गौतम ने लोक-स्थिति के सम्बन्ध में भगवान से पूछा
१ भगवती सूव शतक ५, उ. ६ २ भगवती सूत्र शतक, उ. ६ (ऐसा ही प्रश्न जयंती ने भी किया है।) ३ दीक्षा का बाईसा वर्ष, वि.पू. ४६१४६०