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२२४ | तीर्थकर महावीर एवं अन्य जिज्ञासुओं के सैकड़ों-हजारों प्रान माज भी उस युग की शान-गोष्टियों की एक झलक प्रस्तुत करते हैं। इन शान-गोष्ठियों से यह भी पता चलता है कि सद्युगीन विद्वानों एवं मुमुक्ष ओं में किसप्रकार की जिज्ञासाएं अधिक उठती थीं ? उनके प्रश्नों का स्वरूप तथा स्तर किस प्रकार का था? तथा भगवान महावीर की तत्व-निरूपण शैली कैसी थी और विभिन्न दृष्टियों पर उनका चिन्तन क्या था ?
भगवान् महावीर की तत्त्वचर्चाओं में सबसे प्रसिद्ध तत्त्वचर्चा है-गणधर बाद। केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् तीर्थस्थापना से पहले मध्यमपावा में भगवान् महावीर ने मगध के ग्यारह दिग्गज वैदिक विद्वानों को आत्मा, पुनर्जन्म, कर्म आदि दार्शनिक विषयों पर बड़ी तकंप्रधान, साथ ही अनुमति एवं युक्ति से पूर्ण शैली में जो समाधान दिए थे वे जैन-साहित्य में 'गणघरवाद' नाम से प्रसिद्ध हैं। इन उत्तरों में भगवान् ने वैदिक सूक्तों का जो युक्तिपूर्ण एवं संतुलित विवेचन किया और उन्हीं के माधार से वैदिक विद्वानों के संशयों का निराकरण कर उन्हें संशयमुक्त बनाया वह भारतीय इतिहास की ऐतिहासिक घटना कही जा सकती है।
'गणधरवाद' में संग्रहीत तर्क-प्रतितर्क तथा प्रमाण आदि का उल्लेख आगमों में बीजरूप में प्राप्त होता है, जिसे उनके अनुवर्ती आचार्यों ने नियुक्ति, भाष्य आदि साहित्य में विस्तार के साथ प्रस्तुत किया है ।
उस ज्ञानगोष्ठी में महावीर की सरल तथा अनुभूति पूर्ण प्रतिपादन शैली से प्रभावित होकर ग्यारह विद्वान प्रतिबोधित हो गए और वे महावीर के धर्मसंघ के स्तंभरूप गणधर बने ।
ज्ञानगोष्ठियों का यह मधुर प्रसंग समय-समय पर बनता रहा है । उनमें से कुछ प्रसंग यहां प्रस्तुत किये जाते हैं । जयंती को ज्ञान-गोष्ठी
- कौशाम्बी में जयंती नाम की श्रमणोपासिका थी। यह कौशाम्बीपति शतानीक की बहन तथा उदयन की बुमा (फफी) लगती थी। वह अहंत धर्म के रहस्यों की जानकार और अनन्य उपासिका थी। कौशाम्बी में आने-जाने वाले श्रमण एवं धावक बहुधा उसके यहाँ ठहरा करते थे, इसलिए वह 'माईत धावकों की प्रथम स्थानदात्री' के नाम से भी प्रसिद्ध थी।
पेशालो से विहार करके भगवान् महावीर कौशाम्बी में आये । वे चन्द्रावतरण
१ गणधरों को मानवोष्ठी का वर्णन 'भान पंगा का प्रथम प्रवाह' सीर्षक में देखें