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२२६ | तीपंकर महावीर
"यह कैसे ?"
"हिंसा आदि अधर्म-व्यापार से जीविका चलाने वाले जीवों का सोना अच्छा है, क्योंकि जब तक वे सोये रहते हैं तो अन्य जीवों को दुःख नहीं पहुंचायेंगे और धार्मिक वृत्ति वाले जीवों का जागना अच्छा है, वे जागेंगे तो स्वयं तो धर्ममार्ग में प्रवृत्त होंगे ही अन्य जीवों को भी धर्म की ओर प्रेरित करते रहेंगे। अतः अधार्मिक व्यक्ति का सोना तथा धार्मिक व्यक्ति का जागना अच्छा है।"
"मंते ! सबलता तथा सावधानता अच्छी है या दुर्बलता एवं आलस्य ?"
"अधर्मशील आत्मा के लिए दुर्बलता और आलस्य अच्छा है, क्योंकि अधर्मी दुर्बल एवं आलसी होगा तो पाप-प्रवृत्तियां कम करेगा। इसीप्रकार धर्मशील व्यक्ति की सबलता एवं सावधानता अच्छी है, ताकि वह धर्माचरण में अग्रसर होता रहे।"
इस तरह अनेक प्रश्नोत्तरों के बाद जयंती का मन अत्यंत प्रसन्न हुमा, उसने प्रभु के भिक्षुणी संघ में सम्मिलित होने की इच्छा व्यक्त की। प्रभु ने स्वीकृति प्रदान की । जयंती श्रमणी बनकर साधना में जुट गई ।' रोह को पूर्वापर सम्बन्ध-चर्चा
भगवान् महावीर राजगृह के गुणशिलक उद्यान में विराजमान थे । एक दिन रोह अणगार के मन में लोकस्थिति के सम्बन्ध में कुछ शंका उठी। भगवान के निकट आकर उसने पूछा-"भंते ! क्या पहले लोक है, बाद में अलोक या पहले अलोक है, बाद में लोक ?"
-"लोक-अलोक दोनों ही शाश्वत हैं, इसलिए इनमें पहले-पीछे का क्रमनहीं है।"
"भंते ! क्या जीव पहले हुआ, अजीव बाद में या अजीव पहले हुआ बाद में जीव हा?"
"जीव भी शाश्वत है. अजीव भी शाश्वत है, इसलिए इनमें पहले-पीछे का क्रम नहीं हो सकता।" (पहले-पीछे होना वस्तु की आदि और अशाश्वतता सिद्ध करता है)।
इसीप्रकार भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, सिद्धि-असिद्धि, सिद्धि और सिद्ध
१ भगवती० शतक १२ । उद्देशक र