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२१०वीकर महावीर
भगवाद-"कालोदायी ! ये क्रियाएं सिर्फ पुद्गलास्तिकाय पर ही संभव है, अन्य काय पर नहीं, क्योंकि ये अल्पी है।"
इसप्रकार अनेक प्रश्नोत्तरों के बाद परिवाजकों को भगवान के उत्कृष्ट यचार्य ज्ञान पर श्रद्धा हो गई, विश्वास जम गया। बस, विश्वास जगा तो बज्ञान भगा ! कालोदायी भगवान् का शिष्य बन गया और निग्रंन्य-प्रवचन का गहरा अभ्यास कर विशिष्ट तत्त्वज्ञ बन गया।'
भमणोपासक अम्बर
पुद्गल, स्कन्दक एवं शिव ऋषि की घटनाएं यह स्पष्ट जताती हैं कि वह युग एक प्रकार की सत्य-जिज्ञासा का युग था। प्रतिपक्ष-परम्परा के प्रमुख विद्वान
और धर्मनेता भी जब भगवान् महावीर के सत्य कथन के प्रति आकृष्ट हुए तो वह फिर अगल-बगल नहीं झांकते थे, किंतु अपना पूर्वाग्रह त्यागकर, परम्परा का व्यामोह छोड़कर सर्वात्मना उस सत्य को स्वीकार करके आगे बढ़ते थे।
इन्हीं घटनाओं के साथ अम्बड़ परिव्राजक का भी उल्लेख कर देना चाहिए, जो एक बहुत बड़ा प्रतिष्ठित धर्मनेता और अनेक चमत्कारी विद्याओं का धारक होते हुए भी अपनी परम्परागत धारणाओं का त्यागकर भगवान् महावीर की सम्यक् ज्ञान-दर्शनमूलक सत्य दृष्टि का उपासक बना।
भोपपातिक सूत्र के अनुसार अम्बड़ के सात सौ परिव्राजक शिष्य थे। वह ब्राह्मण था, किंतु भगवान महावीर का तत्त्व-बोध पाकर श्रमणोपासक बन गया।
अम्बड़ को विभूतियों आदि के सम्बन्ध में स्वयं भगवान महावीर ने जो वर्णन किया, वह इस प्रकार है।
एक बार भगवान महावीर पांचालदेश की राजधानी कांपिल्यपुर पधारे।। वहाँ पर इन्द्रभूति गौतम ने जनता में अम्बड़ परिव्राजक के सम्बन्ध में अनेक चमत्कारी बातें सुनीं । तब जिज्ञासु इन्द्रभूति ने भगवान से पूछा, तो भगवान ने बताया"गौतम ! बम्बड़ परिव्राजक विनीत और भद्रप्रकृति वाला है। वह निरंतर छठ्ठछ8 तप का पारणा करते हुए सूर्य के सामने ऊंची भुजाएं करके आतापना लेता है।पुष्कर तप, शुभ परिणाम और प्रशस्त लेश्याबों के कारण उसे वैक्रियलब्धि, वीर्यसम्धि और अवधिज्ञानलन्धि प्राप्त हुई है। इन लब्धियों के कारण अम्बड़
१ विस्तृत पर्चा जानने के लिए-'भगवती-सूत्र', शतक ७, उद्देशक १० २दीला काल का सकीसवां बर्व । (वि. पु. ४१२-४१)