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कल्याण-यात्रा | १३३
श्रदा एवं भक्ति के मंगल प्रवाह में ऐसे दिव्य समवसरण की रचना की, जिसकी दिव्यता भव्यता से ही दर्शक चमत्कृत और पुलकित हो उठे।'
भगवान महावीर के आगमन का संवाद जैसे ही मध्यम पावा में फैला, तो हजारों नर-नारी, जो अब तक उनकी तेजस्वी साधना की चर्चाएं सुनकर बड़ी तीन उत्कण्ठा से दर्शनों की प्रतीक्षा कर रहे थे, सहसा ही रोमांचित हो उठे और एक दूसरे को, स्वजन-परिजन-मित्रवर्ग को साथ में लिये हुए महासेन वन की ओर निकल पड़े, जैसे अनेक नद-नदियों का प्रवाह समुद्र की ओर उमड़ पड़ा हो । गगनमडल से असंख्य देव देवियां पुष्पवृष्टि करते हुए उसी समवसरण की ओर तीव्रगति से दौड़े मा रहे थे। लग रहा था नभोमंडल में आते-जाते देवविमानों से सूर्य का प्रकाश भी आच्छादित हो रहा है-और रंग-बिरंगे बादलों की भांति देव विमानों की रंगीन छाया से भूमि रंग-बिरंगी साड़ी धारण कर रही है।
मध्यमपावा में जैसे अचानक ही कोई तूफान मा गया हो, महावीर के आगमन की चर्चा से सोमिल की यज्ञशाला का वातावरण आन्दोलित हो उठा। विस्मय, कुतूहल और प्रतिरोध की भावना से उद्वेलित पंडितसमूह ने यज्ञ के प्रमुखसूत्रधार इन्द्रभूति गौतम से विचार चर्चा की। इन्द्रभूति स्वयं भी विचार-विमूढ़ ये, पंडितों की उद्वेलना से अधिक व्यग्र हो उठे। बोले-"लगता है महावीर कोई सामान्य पुरुष तो नहीं है । जिसकी प्रथम परिषद् (सभा) में ही अगणित जन-समूह
और असंख्य देव-गण खिचे आ रहे हैं, उसके पास साधना का बल और तप का तेज अवश्य ही अद्भुत होगा । हो सकता है वह ज्ञानबल में अब भी हम से कम हो, किन्तु प्रतिभाशाली और व्युत्पन्न अवश्य है । मैं भी सोचता हूं इस उठते हुए प्रतिस्पर्धी व्यक्तित्व को अभी दबा देना चाहिये, अन्यथा जो श्रमणपरम्परा हमारी यज्ञसंस्था का अब तक विरोध करती आई है, वह अब और अधिक सबल बन कर आक्रमण करेगी, यश-परम्परा को छिन्न-भिन्न करने की जी-तोड़ चेष्टाएं करेंगी, और इससे हमारी धर्म परंपरा में संघर्ष और विद्रोह फैलेगा । युग की भावना, जो ब्राह्मणवाद के विरोध में उमड़ रही है, महावीर उस युगभावना का रुख अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करेंगे। श्रमण प्रारम्भ से ही स्त्री-जाति एवं शूद्रों के प्रति स्नेह प्रदर्शित करते माये हैं, अब जन भावना का बल पाकर हमें पूर्ण रूप से परास्त करने का प्रयत्न करेंगे । अतः अभी से सावधान होकर इसका डट कर प्रतिरोध करना चाहिये ।
१ दिगम्बर परम्परा की मान्यता के अनुसार भगवान महावीर की प्रथम देखना राजगृह के विपुनावल पर्वत पर भावण कृष्णा प्रतिपदा को हुई । यहीं पर इन्द्र द्वारा प्रेरित हुए इनभूति भगवान के समवसरण में बाये।