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१६० | सीकर महावीर पिता के पास गया। माता ने स्नेह-सिक्त स्वर में कहा-"मेरे लाल ! भगवान महावीर की वाणी सुनकर तेरा हृदय प्रफुल्लित हुमा-यह तो प्रसन्नता की बात है, पर हमारे बैठे ही तू घर-बार छोड़कर साधु बनने की बात करता है-यह तो हमारे लिए असा है । तेरा क्षण भर का वियोग भी मुझे बचेन कर गलता है"..""
जमालि ने कहा-"माताजी, संयोग का अन्त तो वियोग ही है । संयोग की सुखानुभूति वियोग की वेदना लेकर ही आती है। यह शरीर ! यह योवन ! यह वैभव ! और यह माता-पिता का स्नेह ! आठ रमणियों का प्रेम ! क्या चिरस्थायी है ? किसे पता, पहले कोन काल का ग्रास बनेगा? मनुष्य सोचता है वृद्धावस्था में धर्म करूंगा, परन्तु यह नहीं सोचता कि वह अवस्था आयेगी भी या नहीं.......?"
__ माता-पुत्र ! तेरा शरीर उत्तम रूप-लक्षण युक्त है, तेरा बल-बीर्य-पराक्रम श्रेष्ठ है। तू विचक्षण है, सब प्रकार से समर्ष है । जब तक यौवन, रूप आदि गुण अस्खलित है, भोग-उपभोग कर, कुल की वृद्धि कर ! बुढ़ापे में दीक्षित हो जाना फिर मै नहीं रोकगी।" इस प्रकार मोह-जनक बातों से माता ने जमालि को रोकने की चेष्टा की, किन्तु मोह और स्नेह की बातें तभी तक हृदय को प्रभावित करती हैं, जब तक हृदय में मोह भरा हो, निर्मोह हृदय को मोह नहीं रोक सकता, सच्चा वैराग्य कठिन से कठिनतर आसक्ति और स्नेह के बन्धनों को क्षण-भर में तोड़ देता है। जमालि को माता-पिता का करुण स्नेह, आठ सुन्दरियों का प्यार और राज-लक्ष्मी का मोह अब कैसे रोक पाता। वह निर्मोह के पथ पर बढ़ गया। उसकी चेतना में वैराग्य की लो प्रज्मलित हो गई थी, प्रकाश फैल गया था, अब अंधकार में कैसे भटकता ? अन्त में माता-पिता की अनुमति पाकर वह भगवान् महावीर के चरणों में प्रवजित हो गया।
अपने पति को, अपने जीवन-साथी को त्याग-विराग के पथ पर बढ़ा देखकर प्रियदर्शना (भ० महावीर की पुत्री) पीछे कैसे रहती ? वह भी तो सीता और दमयन्ती के अतीत आदर्शों की अनुगामिनी थी, जो राज्य-त्याग के समय भी पति के साथ वनवासिनी बनने को आगे-आगे चलीं । जमालि ने पांच सौ व्यक्तियों के साथ दीक्षा ली, प्रियदर्शना ने एक हजार स्त्रियों को प्रबुद्ध कर दिया और सब को सार लेकर भगवान महावीर की धर्मसभा में उपस्थित हई-भते ! हम सब श्रमण धर्म की आराधना करने के लिए अपने जीवन को समर्पित करती हैं। प्रभो! हमें भी अपने श्रमणी संघ में दीक्षित कर जीवन-श्रेयस् का पथ दिखाइए।"
प्रभु महावीर की स्वीकृति पाकर प्रियदर्शना आदि एक हजार स्त्रियाँ आर्या चन्दना के पास प्रवजित हुई । इस प्रकार भगवान् महावीर का यह विदेह विहार