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१८६ | वीकर महावीर तत्वा धावक मक
इनके अतिरिक्त भगवान् महावीर के प्रमुख श्रावकों में मद्दुक, शंख, पुष्कली (पोखली) के नाम भी आते हैं। मदुक के जीवन का एक प्रसंग इस प्रकार है
राजगृह के गुणशिलक चैत्य में भगवान महावीर ठहरे हुये थे।' उसके निकट ही कालोदायी, शलोदायी आदि परिव्राजकों का आश्रम था । एक दिन परिव्राजकों के बीच भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित पंचास्तिकाय के विषय में चर्चा चल रही थी। उसीसमय राजगृह का प्रमुख तत्वज्ञ श्रावक मद्दुक उस मार्ग से निकला। परिवाजकों ने मदुक को देखा तो वे उससे अपनी शंका-समाधान करने लगे
"मद्दुक, आपके धर्माचार्य महावीर धर्म, अधर्म, आकाश, जीव और पुदगल-इन पांच अस्तिकाय की प्ररूपणा करते हैं, परन्तु धर्म, अधर्म, आकाश और जीव अस्तिकाय अमूर्त हैं, अतः उन्हें कैसे माना जा सकता है ?"
मद्दुक ने परिवाजकों से कहा-"क्रिया से किसी के अस्तित्व का पता लग सकता है। केवल आँखों से देखना ही सब कुछ नही है । अनुमान भी एक प्रमाण है। क्रिया के माध्यम से बाहर में अदृष्ट वस्तु के अस्तित्व का भी परिबोध किया जा सकता है।"
"वह कैसे ?" "हवा चल रही है, यह आप जानते हैं न?" "हाँ, जानते हैं।" "आप आंखों से हवा का रंग-रूप देखते हैं ?" "नही देखते हैं।" "नाक में प्रविष्ट होते गंध के पुद्गलों का रूप देखते है ?" "नही देखते हैं।" "अरणि (काष्ठ विशेष) में अग्नि होती है न ?" "हाँ, होती है।" "आप अणि में रखी हुई बग्नि को देखते हैं ?" "नहीं देखते हैं।" 'आयुष्मान् ! आप समुद्र के परवर्ती रूमों को देखते हैं ?"
तेईसवां वर्ष (वि.पू. ४८६)।