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कल्याण-यात्रा | १९३
सामग्रियों का संग्रह करना, ये सब तत्कालीन समाज-व्यवस्था के भयंकर दोष थे; जिन्हें दूर करने के लिए भगवान महावीर ने अथक श्रम किया, अहिंसा और अपरिग्रह का आयाम विस्तृत किया।
समाज-व्यवस्था की भांति उस समय की राज-व्यवस्था भी अत्यंत दोषपूर्ण थी। राज्यों में परस्पर झगड़े होते थे। एक दूसरे के राज्य पर आक्रमण और पराजित प्रजा की मनमानी लूट की जाती थी। इस अशांतिपूर्ण और भय-विभीषकायुक्त राज-व्यवस्था का भी भगवान् महावीर ने अनेकबार खुल कर विरोध किया। कभी-कभी वे पड़ोसी राज्यों की उलझी हुई विकट समस्याओं को बड़े ही शांतिपूर्ण और सहज ढंग से सुलझा कर भयंकर नर-संहार को भी बचा लेते थे । यद्यपि भगवान् महावीर की विद्यमानता में ही वैशाली का महायुद्ध हुआ, जिसमें दोनों ओर उनके परम भक्त राजा थे-एक ओर अजातशत्र कणिक तथा दूसरी ओर चेटक । दस दिन के इस महायुद्ध में सिर्फ दो दिन में दोनों पक्षों के १ करोड़, ८० लाख मनुष्य मारे गये । भगवान् महावीर ने इस भयानक नर-संहार को टालने का प्रयत्न किया, अथवा नहीं ? ये प्रश्न इतिहास की खोज के विषय हैं। किंतु भगवान् महावीर की शांति, समन्वय और अहिंसाप्रिय वृत्ति को देखते हुए लगता है, कि यह नरसंहार अथक प्रयत्नों के बावजूद भी टलने-जैसा नहीं था, इसलिए महावीर संभवतः मोन हो रहे हों, अन्यथा स्त्री और शूद्र के उदार हेतु प्रयत्नशील रहने वाले.. महावीर अपने युग में यह नर-रक्त की होली नहीं खेलने देते।
हमारी इस धारणा की पुष्टि इस बात से भी होती है कि ऐसा ही युद्ध का एक विकट प्रसंग वैशाली युद्ध से सात वर्ष पूर्व महावीर के जीवन के ५० वें वर्ष में कौशाम्बी और उज्जयिनी (उदयन एवं चंडप्रयोत) के बीच उपस्थित हुआ था और तब महावीर स्वयं उस युद्धभूमि में पहुंचकर रणनीति को नया मोड़ देते हैंअध्यात्मनीति की ओर। उनके उपदेश के प्रभाव से रणभूमि तपोभूमि बन जाती है। वह घटना-प्रसंग इस प्रकार है
छपस्थ अवस्था के अंतिम दिनों में कौशाम्बी में जब चन्दना के हाथ से महावीर के घोर अभिग्रह की पूर्ति हुई थी, उन दिनों वहां शतानीक नप राज्य करते थे। उसके तीन वर्ष बाद जब तीषंकर महावीर कौशाम्बी पधारे तो वहां की स्थिति में बहुत बड़ी उथल-पुथल हो चुकी थी। चम्पा को लूटकर चन्दना को अनाथ बनाने
१ भगवती सूत्र मतक ७ । उ०६ २ वीमा के १५ वर्ष । वि.पृ.४६७