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कल्याण-यात्रा | १८९ यिक की दलाली के लिए भी अपर्याप्त है। सामायिक अमूल्य है। वह आध्यारिमक वैभव है, चक्रवर्ती के भौतिक वैभव से भी उसकी तुलना नहीं हो सकती।
श्रेणिक के अन्तर-नयन खुल गये। वे देखते ही रह गये कि समताशील श्रावक की एक सामायिक कितनी मूल्यवान ! कितनी महत्वपूर्ण है !
इस घटना प्रसंग से यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान महावीर के उपासक चाहे वे भौतिक वैभव की दृष्टि से हीन रहे हों, तब भी उनका आत्म-वैभव सर्वश्रेष्ठ था। उनकी समत्व-साधना अद्वितीय थी। यही समता भोगों के सागर में सेतु बनकर उनको इस महासागर से पार करने में समर्थ बनी।
श्रेणिक की भक्ति और युक्ति
भगवान् महावीर के परम भक्त उपासकों में मगधपति श्रेणिक का नाम प्रथम श्रेणी में लिया जा सकता है। यह माना जाता है कि श्रेणिक पहले बौद्धधर्मानुरागी था। फिर अनाथी मुनि के संपर्क में आकर वह जैनधर्म का अनुयायी बना।' श्रोणिक की प्रिय रानी चेलणा वंशाली गणाध्यक्ष चेटक की पुत्री थी और निग्रंन्य धर्म के तत्त्वों की जानकार श्रद्धाशील उपासिका थी। चेलणा की प्रेरणा से ही श्रेणिक जैनधर्म की ओर आकृष्ट हुआ और संभवतः भगवान महावीर के साथ उसका प्रथम संपर्क राजगृह में तब हुआ, जब वे केवलज्ञान प्राप्त कर सर्वप्रथम राजगृह में आये।' इसी सिलसिले में-चेलणा श्रेणिक को भगवान के निकट ले जाती है, पहले वह स्वयं आगे बढ़कर वंदना करती है, और फिर मगधपति श्रेणिक को आगे कर भगवान् की पर्युपासना करवाती है। चेलणा और श्रेणिक की सुन्दर मनोहर जोड़ी देखकर भगवान के अनेक श्रमण-श्रमणियां, वैसे ही रमणीय कामभोग प्राप्त करने का निदान कर डालते हैं। महावीर द्वारा निदान के कुफल का बोध कराने पर भिक्ष भिक्ष णियां उस निदान की आलोचना करते हैं । णिक पर भगवान महावीर के सिद्धान्त और व्यक्तित्व का इतना गहरा प्रभाव पड़ता है कि वह निग्रन्थ प्रवचन का परम उपासक सम्यक्त्वी श्रावक बन जाता है। इसीप्रसंग पर महामन्त्री अभय कुमार भगवान के समक्ष धावक व्रत ग्रहण करता है । धीरे-धीरे श्रेणिक की पता • भगवान के प्रति इतनी प्रगाढ़ हो जाती है कि वह अपने प्रिय पुत्रों (मेघ-नंदीषण)
१ वाचार्य हेमचन्द्र के मतानुसार बेणिक के पिता भगवान् पाश्र्वनाप के पावक थे।
-विषष्टि शलाका १०६15 २ दीक्षा का १३ वा वर्ष । वि. पू. ५००।