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१७० | तीर्थकर महावीर और धर्म-देशना सुनने लगा । भगवान् महावीर का उपदेश सुनकर मानन्द के हृदय में समता एवं वैराग्य की अदभुत हिलोर उठी। ऐसा अनुभव हमा कि वास्तव में ही इस उपदेश का अनुसरण करने से जीवन में चिर शांति और आत्मिक आनन्द की प्राप्ति होगी। अत: प्रवचन के पश्चात् अन्तःप्रेरणा से प्रेरित होकर आनन्द भगवान महावीर के निकट आया और प्रसन्नता के साथ बोला-"भंते ! मैं आपके उपदेश (निर्गन्य-प्रवचन) में विश्वास करता हूं और इसे सत्य समझता हूं। आपने आत्मसाधना के जो दो मार्ग बताये हैं-श्रमणधर्म एवं श्रावकधर्म), उन पर मेरी बदा हुई है। यद्यपि मैं अपने में इतनी पात्रता और क्षमता नहीं पा रहा हूं कि सब कुछ त्यागकर श्रमण बन जाऊं, किन्तु में जीवन में भोगों की मर्यादा अवश्य करना चाहता हूं। त्यागमार्ग पर संपूर्ण रूप से नहीं, तो यथाशक्य रूप से ही उस पर चलना चाहता हूं। जीवन में भोगों का, कामनाओं का अथाह समुद्र फेला पड़ा है, जब तक इस पर त्याग का, समता का सेतु नहीं बांधा जाता, इस समुद्र को तर पाना कठिन है। आपने इस समुद्र को तैरने का मार्ग बताया है-यह आपके तीर्थकरत्व का यथार्थ रूप है। अतः मैं हृदय से आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हुमा आगार-धर्म को स्वीकार करना चाहता हूं।"
भगवान महावीर ने कहा-"आनन्द ! आत्म-साधना का मार्ग इच्छा-योग का मार्ग है। स्वतः प्रेरित साधना ही सच्ची साधना है. उसी में आनन्द है। तुम्हें जिस प्रकार सुख हो, करो।"
आनन्द ने भगवान् महावीर के समक्ष स्थूलहिंसा का मर्यादापूर्वक त्याग किया, असत्य, चोरी, और अब्रह्मचर्य का भी मर्यादापूर्वक त्याग किया । परिग्रह के त्याग में उसने 'इच्छा-परिमाण' रूप परिग्रह के विविध रूपों का प्रत्याख्यान किया। जैसे-चार कोटि हिरण्य निधिरूप (भूमिगत एक प्रकार का निधान), चार कोटि हिरण्य ब्याज में तथा चार कोटि हिरण्य व्यापार में लगा हुआ है-यों बारह कोटि हिरण्य के उपरांत हिरण्य का त्याग । पशुधन की मर्यादा में गायों के चार बज के अतिरिक्त (प्रत्येक बज दस हजार गायों का, अतः कुल ४० हजार गाय) रखने का त्याग। पांचसो हल से अधिक खेती योग्य भूमि रखने की मर्यादा । एक हजार शकट (पांचसो शकट खेतों से माल ढोने योग्य और पांचसो यात्रा एवं व्यापारार्थ बाहर जाने योग्य) से अधिक रखने की मर्यादा । तथा चार वाहन सामान ढोने योग्य
. 'हन' उस समय का पारिभाषिक शब्द है । ४०,००० वर्ग हस्त भूमि का एक निवर्तन होता है।
तवा १.० निवर्तन का एक 'हल'। म. जगदीशचन्द्र जैन (लाइफ-इन-एजेंट, इंडिया, पृ.९०) के अनुसार एक हल लगभग एक एकर के बराबर होता है।