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१७८ | तीर्थकर महावीर इस ममत्व केन्द्र को तोड़ने के लिए ही उसके समक्ष यह विकट प्रसंग उपस्थित हुना हो।
धर्म-जागरण करते हुए एक रात्रि में सुरादेव के समक्ष एक दुष्ट देव माया और बड़ी ही करता के साथ उसे व्रत-नियम छोड़ने की धमकी देने लगा। सुरादेव नहीं डिगा तो दुष्ट देव ने क्रमशः उसके तीन पुत्रों की बात उसी के समक्ष की और उनके रक्त के छींटे उसके शरीर पर डाले ! इस भयानक और बीभत्स दृश्य को देखकर भी सुरादेव शांत एवं धर्म-चिन्तना में लीन रहा । अन्त में देव ने कहा"यदि तू व्रत नहीं छोड़ता है तो मैं तेरे शरीर में सोलह महारोग उत्पन्न कर दूंगा, तू तड़प-तड़प कर मरेगा।"
देव की धमकी से सुरादेव की शारीरिक आसक्ति जग पड़ी। वह व्याकुल हो उठा और दुष्ट देव को पकड़ने के लिए दौड़ा। देव गायब हो गया, वह खम्भे से जा टकराया। उसकी चिल्लाहट सुनकर पत्नी आई । उसने बताया- "सब पुत्र कुशलता पूर्वक सोये है, किसी प्रवंचक देव ने तुम्हें धर्म-भ्रष्ट करने के लिए यह भयावना दृश्य खड़ा किया है।"
सुरादेव अपनी देहासक्ति के प्रति जागरूक हो गया, और देह की अनित्यता एवं अशुचिता का ध्यान कर देहासक्ति की वासना से मुक्त हुन । चुल्लनीपिता की भांति उसने भी अन्तिम समय में अनशन कर समाधि-पूर्वक मृत्यु प्राप्त की।'
५. धनासक्ति का त्याग-चुल्लशतक
भगवान् महावीर के दस प्रमुख श्रावकों में पांचवां नाम चुल्लशतक का है। उसके पास भी छह-छह हिरण्यकोटि की सम्पत्ति (कुल १८ कोटि) थी और गायों के छह गोकुल थे। भगवान महावीर जब आलभिका नगरी के शंखवन में पधारे तो चुल्लशतक ने धर्मोपदेश सुनकर सपत्नीक श्रावक-धर्म स्वीकार किया और आनन्द बादि श्रमणोपासकों की भांति निर्दोष एवं निर्भय होकर धर्म-साधना करता रहा।
एक बार धर्म-साधना में बैठे हुये रात्रि के समय किसी दुष्ट देव ने उसे व्रत भंग करने को विवश किया। वह बडिग रहा। देव उसी के समक्ष उसके पुत्र की बात कर कड़ाहे में उबालने लगा। यह भयानक दृश्य देखकर भी चुल्लशतक कम्पित
१ उपासक बा, मध्यवन ४। १ बताइवें वर्षावास के बाद (कि..४६५)।