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कल्याण-यात्रा | १६ लगा-यह सब तो भ्रम था, छलना थी। उसने पत्नी के प्रति रहे हुए सूक्म स्नेह को समझा और उससे मुक्त होकर जीवन की अंतिम साधना में सर्वथा समाधिपूर्वक मृत्यु का वरण किया।' ८. अप्रिय सत्य का निषेध-महाशतक
महाशतक मगध का एक प्रसिद्ध धनकुबेर गृहस्थ था। उसके पास चौबीस कोटि हिरण्य एवं अस्सी हजार गायों के आठ गोकुल थे। राजगृह में उसका विशिष्ट स्थान था। उसके १३ पलियां थीं। सबसे बड़ी पत्नी थी-रेवती। उसके पिता ने दहेज में आठ कोटि हिरण्य एवं एक गोकुल दिया था।
भगवान् महावीर मगध भूमि में विहार करते हुए राजगृह में पधारे। महा शतक ने भगवान् का उपदेश सुना, उसकी अन्तर आत्मा जगी, विषयों से विरक्ति हुई, परिणामस्वरूप महाशतक ने श्रावकधर्म स्वीकार कर तृष्णा एवं भोग-साधनों की मर्यादा की।
महाशतक की पत्नी रेवती अत्यंत भोग-पिपासु, मांस-लोलुप और ईर्ष्यालु थी। ईर्ष्या और तीव कामासक्ति के कारण ही उसने अपनी १२ सौतों को शस्त्र एवं विष-प्रयोग करके मार डाला था। महाशतक शांत एव सदाचारपूर्ण जीवन जीता था, रेवती उसे बार-बार अपनी काम-वासना के चंगुल में फंसाने की कुचेष्टा करती रहती । मद्य-मांस के उन्मुक्त सेवन से उसकी वासनाएं प्रबल हो गई थीं। वह महाशतक से उनकी पूर्ति नहीं कर पाती-इस कारण वह कभी-कभी उस पर क्रोध और आक्रोश भी करने लगती।
महाशतक पत्नी के इस असंयत, वासनापूर्ण, क्रूर एवं दुष्ट चाल-चलन से बहुत क्षुब्ध रहता। इस क्षोभ से, अशांति से किनारा करने के लिए घर का सब भार पुत्र को संभलाकर स्वयं एकान्त में ब्रह्मचर्य, पोषध, उपवास आदि के साथ मात्म-चिन्तना करने लगा।
एक बार महाशतक पौषधशाला में बैठा ध्यान कर रहा था। रेवती ने उस दिन छक कर मद्य-पान किया था, नशे में उन्मत्त होकर वह ध्यानस्थ महाशतक के पास आई और मोह-उन्माद जनक हाव-भाव करके उसे अपनी ओर खींचने लगी। महाशतक प्रस्तर-प्रतिमा की भांति अपनी साधना में स्थिर रहा। काम-प्रार्थना अस्वीकृत होने पर रेवती दांत-पीसती हुई उसके ब्रह्मचर्य तथा व्रतों पर माक्षेप करने लगी। महाशतक शांत व मौन रहा ।
१उपासक दशा, अध्ययन । २ बाईसवाँ वर्ष (वि. पू. ४६०)।