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१७४ | तीर्षकर महावीर
दृढ़ता-पूर्वक कही गई आनन्द की बात से गौतम का मन संशयग्रस्त हो गया, वे सीधे दूति-पलास चैत्य में आए, भगवान महावीर के निकट जाकर आनन्द के साथ हुए वार्तालाप की चर्चा की।
भगवान ने कहा-"गौतम ! श्रमणोपासक आनन्द का कथन सत्य है । तुमने उसके सत्य को असत्य कहा है--यह सत्य की बहुत बड़ी अवहेलना है। तुम शीघ्र मानन्द के पास वापस जाओ ! उससे क्षमा मांगो और अपने भ्रांत-कथन के लिए प्रायश्चित्त करो।"
सत्य के परम जिज्ञासु इन्द्रभूति उलटे पांवों आनन्द के निकट आये। आनन्द ! मैंने तुम्हारे सत्य ज्ञान की अवहेलना की, मैं तुम्हें खमाता हूं। तुम्हारा कथन सत्य है, मेरी ही धारणा भ्रांत थी।"
एक श्रमणोपासक के समक्ष भगवान महावीर के ज्येष्ठ एवं श्रमणसंघ के श्रेष्ठतम श्रमण द्वारा यों सरलता पूर्वक क्षमा-याचना किये जाने पर आनन्द गाथापति का हृदय गद्गद हो गया। निग्रंन्य प्रवचन में सत्य की कितनी उत्कट निष्ठा है-यह जानकर वह उल्लास व प्रमोद मे पुलकित हो उठा।
बीस वर्ष तक गृहस्थधर्म की शुद्ध आराधना करके अन्त में मारणांतिक संलेषणा के साथ मनःसमाधि-पूर्वक आनन्द ने देह त्याग किया।
गाथापति आनन्द का जीवन भोग में योग और समृद्धि में समता का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। इसीप्रकार भगवान महावीर के निकट में समय-समय पर अन्य अनेक गृहस्थ साधक आये, जिन्होंने जीवन को त्याग-पथ पर अग्रसर किया, स्वपुरुषार्थ से अर्जित अपार समृद्धि में संतोष और वैराग्य धारण कर सच्ची समाधि और आत्मानन्द का अनुभव किया। उनका संक्षिप्त परिचय भी इसी प्रकरण में प्रस्तुत है२. परम निष्ठावान गायापति कामदेव
भगवान महावीर एक बार चम्पा नगरी में पधारे। वहाँ कामदेव नाम का धनाढ्य गृहस्थ रहता था। उसके पास छह कोटि हिरण्य निधान में, छह कोटि व्याज में और छह कोटि व्यापार में-यों मठारह हिरण्यकोटि धन था। दस-दस हजार गायों के छह गोकुल (बज) थे । भगवान महावीर का धर्म-प्रवचन सुनकर कामदेव
१ बानंद के व्रत ग्रहण मादि का विस्तृत वर्णन देखिए-उपासक दमा, अध्ययन १।