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कल्याण-यात्रा | १६५ एक बार राजगृह में कुछ विदेशी व्यापारी रत्नकम्बल लेकर आये । उनका मूल्य बहुत अधिक होने के कारण महाराज श्रेणिक ने भी वे रत्नकम्बल नहीं खरीदे। विदेशी व्यापारी निराश होकर जा रहे थे कि भद्रा सेठानी के महलों की तरफ आ गये । भद्रा के पास अपार स्वर्ण-भण्डार भरे थे, उसने विदेशी व्यापारियों को मुंह मांगा मूल्य देकर रत्नकम्बल खरीद लिए । कम्बल सोलह ही थे, अतः उनके दो-दो टुकड़े करके बत्तीसों पुत्र-वधुओं को दे दिये।
___ महारानी चेलणा ने राजा श्रेणिक से एक रत्नकम्बल की मांग की। राजा ने व्यापारियों को बुलाया तो पता चला कि सभी कम्बल सेठानी भद्रा ने खरीद लिए हैं। राजा ने सेठानी के पास कहलाया "एक कम्बल हमें चाहिए, जो भी मूल्य हो वह लेकर कम्बल दे दें।" भद्रा ने विनयपूर्वक वापस सूचित किया कि "वे रलकम्बल तो खण्डित हो गये । मेरी पुत्र-वधुओं ने उनके पाद-प्रोच्छन (पैर पोंछने के रूमाल) बना लिए हैं, अतः अब मैं क्षमा चाहती हूँ।"
राजा श्रेणिक को यह जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि नगर में उससे भी अधिक श्रीमन्त और उदार लोग बसते हैं, जिनके वैभव और भोग-साधनों की थाह पाना कठिन है । राजा को जिज्ञासा हुई कि आखिर उसका पुत्र कंसा है, जिसकी पत्नियां देव-दुर्लभ रत्नकम्बल के पोंछने बनाकर फेंक देती हैं। राजा ने भद्रा को कहलाया-"महाराज आपके पुत्र शालिभद्र को देखना चाहते हैं।"
भद्रा असमंजस में पड़ गई । शालिभद्र आज तक सातवीं मंजिल से नीचे भी नहीं उतरा, उसे कुछ भी लोक-व्यवहार का पता नहीं । राजा कहीं अप्रसन्न न हो जायें, अतः वह स्वयं राज-दरबार में उपस्थित हुई और महाराज से प्रार्थना की"महाराज ! शालिभद्र आज तक कभी महल से नीचे नहीं उतरा, वह बहुत ही सुकुमार है, यहां आने में उसे बहुत कष्ट होगा, अतः कृपा कर आप सपरिवार मेरे घर पर पधार कर आतिथ्य स्वीकार करें।
भद्रा की प्रार्थना स्वीकार कर राजा श्रेणिक भवन में पहुंचा । उसकी विशाल शोभा और मनोहर व्यवस्था देखकर चकित रह गया। भद्रा ने राजा का शाही स्वागत किया । शालिभद्र को बुलाने सेवक को ऊपर भेजा। सेवक ने जाकर कहा-"अपने महलों में राजा श्रेणिक माये हैं, अतः आपको नीचे बुलाया है।" शालिभद्र ने कहा"उसे जो कुछ लेना-देना हो, देकर विदा करो, मरा वहां क्या काम है ?" तब भद्रा स्वयं ऊपर गई, उसने सब स्थिति समझाई-"श्रेणिक राजा अपने स्वामी है. नाथ, वे तुमसे मिलना चाहते हैं, तुमको अपने राज-भवन में बुलाया था, लेकिन मेरी प्रार्थना