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कल्याण-यात्रा| १५०
"गौतम ! तुम्हारा अनुमान ठीक है । देवानन्दा की अन्तश्चेतना में जो रहस्य छिपा है, उसका अनुमान स्वयं इसे भी नहीं है, सिर्फ मनात अनुभूति ही इसे उत्कंटित कर रही है।"
प्रभु का उत्तर सुनकर गौतम का आश्चर्य कुतूहल में परिणत हो गया। स्वयं ब्राह्मण ऋषभदत्त और देवानन्दा भी उस रहस्य को जानने के लिए विस्मित-से प्रभु की ओर देखने लगे।
प्रभु ने रहस्य का आवरण हटाते हुए कहा-"गौतम ! यह देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है।"
सर्वत्र एक नीरवता छा गई। आश्चर्य-मुग्ध गौतम बोले-"भंते ! यह तो बिल्कुल नई बात सुन रहा हूं। हम सभी तो जानते हैं - त्रिशला क्षत्रियाणी आपकी माता हैं, सिद्धार्थ क्षत्रिय मापके पिता हैं ... " यह नई बात आज पहली बार सुनी
"हां, गौतम ! जो घटनाएं अतीत के आवरण में छिप जाती हैं, वे रहस्य बनकर ही प्रकट होती हैं। मैंने त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ से जन्म लेने के पूर्व बियासी रात्रियां देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में व्यतीत की हैं । देवानन्दा को जो चतुर्दश महास्वप्न आये थे, वे बियासवीं रात्रि को लौटते हुए प्रतीत हुए और इसे अनुमति हुई कि मेरी कोई अमूल्य निधि किसी ने लूट ली है। उसी रात्रि को हरिणंगमेषी देव द्वारा मेरा गर्भान्तरण हुआ। मनुष्यलोक में मेरा प्रथम अवतरण देवानन्दा के गर्भ में हमा और जन्म हुआ त्रिशला की कुक्षि से"-प्रभु ने एक रहस्य को प्रकट कर दिया।
___ गौतम, ऋषभदत्त और हजारों-हजार श्रोता आश्चर्य के साथ देवानन्दा के मुंह की ओर देखने लगे। देवानन्दा अतीत की स्मृतियों में डूब गई थी। उस रात्रि की अनुमति स्मृति में साकार हो गई। बियासीवीं रात्रि का वह विचित्र दृश्य उसकी आँखों में तैर गया । उसका रोम-रोम उत्कटित हो गया और श्रद्धा के साथ स्वीकृतिसूचक मुद्रा में उसने प्रभु के चरणों में नमन किया।
प्रभु महावीर ने वातावरण को सजीव बनाते हुए कहा-"गौतम ! इसीलिए मैंने कहा-देवानन्दा मेरी माता है। मुझे देखते हो इसके हृदय में पुत्र-स्नेह जग उठा, मातृ-सुलभ वात्सल्य का अपूर्व ज्वार उमड़ आया और उसी के यह विचित्र लक्षण हैं, जिन्हें देखकर तुम्हारी जिज्ञासा मुखर हुई !''
१ यह माना जाता है कि भगवान् महावीर के गर्भ-परिवर्तन की यह घटना अब तक किसी भी
मनुष्य को ज्ञात नहीं पी । सर्वप्रथम उन्हीं के द्वारा यह रहस्योद्घाटन हुआ । देवानन्दा का यह प्रसंग भगवती सूत्र मतक ६ उद्देशक ६ में विस्तार के साप दिया गया है।