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कल्याण-यात्रा | १५१ न गुरु का सानिध्य ही उपलब्ध था, तब तुमने एक नन्हें-से खरगोश के लिए इतना कष्ट सहन किया, तीव्र पीड़ा को पीड़ा नहीं मानकर अहिंसा-करुणा एवं समभाव की मुदित धारा में बह गये थे और आज मनुष्य हो, सम्यग्दर्शन प्राप्त किया है, ज्ञान-चेतना का द्वार उन्मुक्त हुआ है । सद्धर्म की ज्योति-शिखा तुम्हारे सामने प्रज्वलित है, बल, वीर्य, पराक्रम और विवेक का सुयोग मिला है और महान् उदात्त संकल्प के साथ कष्टों से जूझने को निकल पड़े हो, तो एक रात के मद कष्ट ने ही तुम्हें कैसे विषलित कर दिया ? ज्ञान का प्रभाकर सूर्य उदित होते हुये भी अज्ञान और अधयं भरी अंधियारी ने कैसे तुम्हें दिग्मूढ़ बना दिया ? तुम थोड़े से कष्ट से कैसे विचलित हो गये ? श्रमणों की थोड़ी-सी उपेक्षा तुम्हारे जैसे वीरों के लिये शिरःशल बन गई? मेघ, प्रबुद्ध हो जाओ।"
मेघ की स्मृति पर से अतीत का पर्दा उठ गया। जाति-स्मरण हुआ और उसने देखा-अपने अतीत जीवन को । वह स्तब्ध रह गया, उसके रोम उत्कंठित हो गये, प्रस्तर-प्रतिमा की भांति वह शान्त, मौन, निश्चेष्ट खड़ा रहा । दो क्षण बाद ही जैसे चंतना लोट आई हो, उसका मन प्रशान्त हो गया, व्याकुलता का कोहरा छट गया, और स्वस्थता का प्रकाश जगमगा उठा, वह हृदय की असीम श्रद्धा के साथ, अविचल संकल्प के साथ प्रभु महावीर के चरणों में विनत हो गया-'प्रभो ! मेरी स्मृति जागृत हो गई, मेरी चेतना के आवरण दूर हट गये, मैं अपनी भूल और प्रमाद पर, अपनी विस्मृति पर पश्चात्ताप करता हूं और भविष्य के लिये अपने शरीर को (आँखों को छोड़कर) सर्वात्मना मापको समरित करता हूं, समस्त श्रमणों की सेवा के लिये, यह तन, मन और जीवन अब आपके द्वारा निर्दिष्ट पथ पर बढ़ता रहेगा, अविचल ! अकम्पित !"
मेषकुमार के टूटते हुए संकल्पों की, लुप्त होती ज्ञान-बेतना की भगवान् महावीर ने जो मनोवैज्ञानिक चिकित्सा की, अंधकार में भटकते हुए को जो बोधिदान दिया, वह उनकी उपदेशशैली का एक उत्कृष्टतम उदाहरण है।
नषेण का पुनर्जागरण गिरते हुए मनोबल को ऊंचा उठाना, पतित आत्मा में भी पविध संकल्प जगाना और प्रमाद एवं आत्मविस्मृति में डूबते हुए साधक को जागृति का संबल देकर वात्सल्य मरा उद्बोधन देना भगवान महावीर की जीवन-दृष्टि का एक उदात रूप है. जो नंदीषण की घटना से हमारे समक्ष उजागर होता है।
नंदीषेण भी महाराज श्रेणिक का पुत्र था। वह गज-क्रीड़ा का विशेष रसिया