________________
साधना के महापथ पर | ६१ भी यह चिढ़ता क्यों नहीं, और यहां से भाग क्यों नहीं जाता।" लोगों को आश्चर्य भी होता, इस श्रमण का शरीर क्या वज या फौलाद का बना है, जो इतनी पीड़ाएं सहकर भी जीवित रह रहा है। भोजन और शय्या का तो प्रश्न ही क्या, यदि कभी संयोगवश दो चार मास में मिल गया तो इतना रूखा और बासी अन्न कि छह महीने का भूखा भिखारी भी उसे खाना नहीं चाहे। दूसरी बार के बिहार में तो प्रभु को चातुर्मास-काल में ठहरने के लिए कहीं एक छप्पर भी नहीं मिला, तो वृक्षों के नीचे घूमते-फिरते ही उन्होंने वर्षावास पूरा किया। इस प्रकार उस अनार्यभूमि में घोर कदर्थनाएं, प्राणान्तक पीड़ाएं सहकर भी प्रभु सदा समबुद्धि, प्रशान्त और धर्म एवं शुक्लध्यान में लीन रहे।"
अनार्य प्रदेश में विहार करके प्रभ ने स्वयं की अत्यधिक कर्म-निर्जरा तो की ही, अपनी समता तथा तितिक्षाशक्ति का उत्कृष्ट परीक्षण भी किया। किन्तु साथ में उन अनार्यों के मन में श्रमण के प्रति जो द्वेष, घृणा और दुर्भाव का विष घुला हुआ था, वह भी शांत किया, उनकी परम क्षमाशीलता से अवश्य ही अनार्यों का हृदयपरिवर्तन भी हुआ होगा और जैसे बुद्ध के समक्ष अंगुलिमाल डाकू ने आत्मसमर्पण कर दिया, वैसे अनेक दस्युओं ने महावीर के चरणों में विनत हो, अपनी दुष्टता का त्याग कर आत्मसमर्पण भी किया ही होगा-इसकी पूरी संभावना है, पर कोई घटना-विशेष का उल्लेख प्राचीन साहित्य में प्राप्त न होने से महावीर की अनार्यप्रदेश में विहार-चर्या का रोमांचक विवरण कुछ अधूरा-सा ही प्रस्तुत करना पड़ रहा है।
एक बार वैशाली के बाहर श्रमण महावीर कायोत्सर्ग में खड़े थे। निर्वस्त्र श्रमण को देखकर बच्ने उपहास करते हुए उन पर कंकर-पत्थर फेंकने लगे। श्रमण महावीर स्थिर थे धर्य परीक्षा के इस प्रसंग पर अन्यन्त प्रसन्न ! तभी गणराजा शंख, जो कि राजा सिद्धार्थ के मित्र भी थे, उधर से गुजरे । उन्होंने ध्यानस्थ श्रमण महावीर की ओर बालकों को कंकर-पत्थर फेंकते देखा, तो उनका हृदय खिन्न हो उठा। "महाश्रमण को अज्ञान बच्चे कितनी पीड़ा पहुंचा रहे हैं ?' शंखराज अश्व से उतर कर आये, बच्चों को डांटकर भगाया और गद्गद कंठ से महाश्रमण की अविचल समत्व-साधना की संतुति कर नगर के बालकों की ओर से क्षमायाचना की।
१ आचारांग मूत्र श्रुतस्कंध १, अध्ययन ६, उद्देशक ३, गाथा ७ से १२ । २ पश्चिमी बंगाल में मुर्शिदाबाद की भूमि को 'राढ' भूमि कहा जाता था, आचारांग (१-६)
में लाढ़, वजभूमि और शुभ्रभूमि नामों का उल्लेख भी मिलता है। ३ घटना वर्ष वि. पू. ५०२