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१४ | तीपंकर महावीर कर लाल-लाल अंगारे की-सी आँखों से गौशालक को निहारने लगा और बोलादुष्ट, तपस्वी से मजाक ! ठहर जा ! अभी तुझे तेरी करनी का फल चखाता हूं
और क्रोधाविष्ट तापस ने कुछ कदम पीछे हटकर एक भयंकर तेजस् (तेजोलेश्या) भाग-सा दाहक धूम्र गोशालक पर फेंका । गौशालक के तो तोते उड़ गये, सिर पर पैर रखकर दौड़ा प्रभु महावीर की ओर- "प्रभो ! मरा, मरा! बचाओ ! यह आग मेरा पीछा कर रही है ।"
गोशालक की करुण चीख ने श्रमण महावीर के अन्तस् को द्रवित कर दिया। करुणा का प्रवाह फूट पड़ा। अग्नि-सा धधकता धूम्र गौशालक पर आता देखकर तुरन्त उन्होंने अपनी शीतल-तपःशक्ति (शीतल तेजोलेश्या) का प्रयोग किया, बस, उस महाश्रमण के नयनों में ही अमृत भरा था, अमिय-दृष्टि से झांकते ही वैश्यायन की तेजोलेश्या शान्त हो गई। गौशालक की जान में जान आई। तापस ने अपने से प्रखर शक्तिशाली साधक का प्रतिरोध देखा, तो वह विनय से झुक गया और वहीं खड़ा नम्र शब्दों में बोला-“जान लिया, प्रभो! आपकी शक्ति का अद्भुत प्रभाव जान लिया !"
गौशालक घबराया हुआ-सा तो था ही, तापस को संकेत-भाषा में वह कुछ भी समझ नहीं पाया । बोला-'प्रभो ! यह जूओं का पिण्ड (शय्यातर) क्या बकबक कर रहा है ?"
प्रभु महावीर ने उसे समझाया - "अभी वह तुझे भस्मसात् कर डालता । तेरे कटु आक्षेपों से ऋद्ध हो तुझे भस्म करने के लिए उसने अपनी तेजोलेश्या छोड़ी थी। यदि मैंने शीतलेश्या का प्रयोग न किया होता, तो तू जलकर राख हो जाता। मेरे शीतल प्रयोग के उत्तर में ही वह मुझसे क्षमा मांग रहा है।"
तेजोलेश्या का यह तीव्र-दहनशील प्रयोग देखकर गौशालक अत्यन्त भयभीत हो गया। भय हमेशा शक्ति की शरण खोजता है गौशालक के मन में भी तेजोलेश्या के प्रति आकर्षण बढ़ा। विनयपूर्वक उसने प्रभु महावीर से पूछा -. 'प्रभो ! यह तेजो. लेश्या क्या चीज है ? कैसे प्राप्त की जाती है ?"
__ महावीर यद्यपि परिणामदर्शी थे, अयोग्य व्यक्ति को नेजस्शक्ति का रहस्य बताने के परिणाम कितने खतरनाक हो सकते हैं, उनसे छुपे नहीं थे, फिर भी भावी वश उन्होंने गौशालक को तेजोलेश्या प्राप्त करने की सम्पूर्ण विधि बता दी। वह विधि इस प्रकार है
___ "जो मनुष्य छह महीनों तक निरन्तर छठ तप (बेला) करके सूर्य के सामने दृष्टि रखकर खड़ा-बड़ा भातापना लेता है, उबले हुये मुट्ठी भर उड़द और